Tuesday, February 12, 2008

ये बूढ़े लोग अजब होते हैं : गुलज़ार

मुझे गुलज़ार पसंद हैं, कोई कारण नही दे सकता ......बस उनके गीत...मन तक कब पहुंच गए पता भी नही चला ..जब भी सुनता या उन्हें पढता हूँ....बस उन्हीं का हो जाता हूँ.....



आज इंटरनेट पर आवारागर्दी करते उन्हें भी पा गया ....यह भी कमाल का है ।

आईये साथ-साथ मज़ा लेते हैं -----





अबे इसे पता नहीं क्या कहेंगे आप ऐसी नज़्म को...

देखने में पाजी लगती है॥

वैसे है नहीं

या फिर देखने में नहीं लगती पर है पाजी॥




ये बूढ़े लोग अजब होते हैं

छाज में डाल के

माज़ी के दिन

कंकर चुन कर दांत तले रख कर

उनको फिर से तोड़ने की कोशिश करने लगते हैं
तीस बरस की उमर मे जब हुआ दांत ना टूटा


सत्तर साल की उम्र मे तो दांत ही टूटेगा
-*-


नये नये ही चाँद पे रहने आये थे


हवा ना पानी, गर्द ना कूड़ा

ना कोई आवाज़, ना हरक़त

ग्रेविटी पे तो पाँव नहीं पड़ते हैं कहीं पर

अपने वतन का भी अहसास नही होता
जो भी घुटन है जैसी भी है,


चल कर ज़मीं पर रहते हैं

चलो चलें, चल कर ज़मीं पर रहते हैं


गुलज़ार

2 comments:

Yunus Khan said...

वाह । बहुत दिनों बाद गुलज़ारिया मिज़ाज का कुछ अनपढ़ा सा पढ़ने मिला । कहां से खोज निकाला भई

Manish Kumar said...

धन्यवाद हुजूर !