Sunday, August 12, 2007

राह देख देख कर कही ऐसा न हो....................................

मेरे कुछ दोस्त अक्सर मुझे अटपटा मेल करते आए हैं..। कुछ ऐसे मेल जिसे समझ ही नही पाता..।
खैर मेरे एक मित्र, जो बीपीओ में खट रहे हैं, ने एक स्क्रेप भेजा। आरकूट पर आयी यह कविता मुझे अच्छी लगी। कारण यह भी है कि मेरा यह मित्र अंग्रेजीदां बन गया है.... उसे इन दिनों हिन्दी से एक बार फिर प्यार होने जा रहा है। ऐसा मैं मानता हूं। पता नहीं यह उसने कहां से उठाया है.. यह मैं नहीं जानता.। अगर आप जानते हैं तो जरूर बतावें..............

गिरीन्द्र




किसी के इतने पास न जा

के दूर जाना खौफ़ बन जाये

एक कदम पीछे देखने पर

सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये

किसी को इतना अपना न बना

कि उसे खोने का डर लगा रहे

इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये


तु पल पल खुद को ही खोने लगे

किसी के इतने सपने न देख

के काली रात भी रंगीली लगे

आंख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे

किसी को इतना प्यार न कर

के बैठे बैठे आंख नम हो जाये

उसे गर मिले एक दर्द

इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये

किसी के बारे मे इतना न सोच

कि सोच का मतलब ही वो बन जाये

भीड के बीच भी लगे तन्हाई से जकडे गये

किसी को इतना याद न कर

कि जहा देखो वो ही नज़र आये

राह देख देख कर कही ऐसा न हो

जिन्दगी पीछे छूट जाये ..

2 comments:

  1. अच्छी कविता है ..अच्छा लगा

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  2. दिल के करीब हुये रिश्तों से मिले दर्द को अच्छा बयान किया है.. लिखने वाले ने...

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