मुझे आदमी का सड़क पार करना हमेशा अच्छा लगता है क्योंकि इस तरह एक उम्मीद - सी होती है कि दुनिया जो इस तरफ है शायद उससे कुछ बेहतर हो सड़क के उस तरफ। -केदारनाथ सिंह
Friday, June 22, 2007
Friends, be a good journalist. Think for society and down-trodden…”
“Friends, be a good journalist. Think for society and down-trodden…”
– शिवनाथ झा
चार पन्नों की एक जीवंत विचार अखबार “मीडिया स्कैन”
की एक रिर्पोट मैंने अनुभव में छापी तो तुरंत एक कामेंट मेरे ब्लाग पर आया। यह कामेंट किसी और का नहीं बल्कि पत्रकारिता जगत के जाने-पहचाने नाम शिवनाथ झा का था। मेरे दौर के अधिकतर पत्रकार इस नाम से वाकिफ हैं। संर्घष का दूसरा नाम यदि ये हैं, तो कहना गलत नहीं होगा। खासकर मेरे लिए यह गौरव का क्षण था, क्योंकि शिवनाथ झा स्वयं जो मेरे ब्लाग पर थे।
आजकल आप अपनी किताबों को लेकर चर्चा में बने हुए हैं। पहले “बिस्मिलाह” खान को लेकर फिर “इंडिया कालिंग” को लेकर। इन दिनों आप अपने मोनोग्राफ “लालू प्रसाद- इंडियाज माइरेकल” को लेकर चर्चा में बने हुए हैं।
उनका कामेंट खुद में एक कहानी है, इसलिए उसे सामने लाना हमारा दायित्व बनता है। दरअसल शिवनाथ झा जी ने अपनी बात अंग्रेजी में कही, इस कारण उसका हिन्दी रूप मैं यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। ..लेकिन अंत में उन्होने जो कहा है, उसे उसी रूप में यहां पेश कर रहा हूं-
“Friends, be a good journalist. Think for society and down-trodden…”
अब पूरी बात-
यह सचमुच खुशी की बात है। एक सच्ची पत्रकारिता वह नहीं है, जिसे हम प्रतिदिन महानगरों में देखते और पढ़ते हैं। मैं “हॉकर” से पत्रकार बना हूं।
बिहार के प्रसिद्ध पटना विश्वविद्यालय से मैंने स्नातकोत्तर किया है। आठ साल तक पटना की गलियों में मैंने साईकल से अखबार बांटा है। 1968 से 1975 तक मैंने यह काम किया, 1975 में ही मुझे “द इंडियन नेशन”- (पटना का प्रसिद्ध अंग्रेजी दैनिक) में कॉपी होल्डर की नौकरी मिली। उस समय से मैंने पढ़ाई की ओर भी ध्यान दिया और अपने परिवार के लिए रोटी भी जुटायी।
एक दफे पत्रकारिता का स्वाद चखने के बाद यह तो मेरे लिए नशा सा बन गया। तब तक मैं बिहार और बंगाल के कई हिस्सों में काम कर चुका था।
1988 में मेरी जिंदगी में एक मोड़ आया, देश के प्रसिद्ध पत्रकार एम.जे.अकबर ने मुझे ब्रेक दिया। पत्रकारिता के मुख्य धारा में मेरा प्रवेश उन्होंने ही कराया। “टेलिग्राफ” के लिए बतौर स्ट्रींगर मैंने काम शुरू किया।
इसके बाद काम का दौर जैसे चल पड़ा। “द इंडियन एक्सप्रेस”, “द स्टेट्समेन”, “द एशियन एज” आदि अखबारों में काम करता चला गया।
मोनोग्राफ लिखने के क्रम में कई बातें जेहन में समाती गयी। निचले तबके के लिए, समाज का वह तबका, जो उपेक्षित है.................
दोस्तों, एक अच्छे पत्रकार बने, अच्छाई के लिए सोचें, समाज के लिए सोचें, समाज के उस तबके के बारे में सोचें जो सबसे नीचे है..........
- शिवनाथ झा
लगे हाथ, प्रैस ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने शिवनाथ जी के कार्यों के विषय में जो कुछ कहा, उसका भावानुवाद-
चार साल पहले, जब उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को पैसों का अभाव था, उस समय भारत सरकार ने उनकी सहायता के लिए पार्लियामेंट एनेक्सी में उनका हीं कार्यक्रम आयोजित करवाया।
इसके बाद हीं नीना (शिवनाथ झा की धर्मपत्नी) - शिवनाथ झा ने एक कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की उन शिक्षाविदों, संगीतकारों, कलाकारों के लिए जिन्होने देश का नाम रोशन किया। नीना-शिवनाथ झा ने एक मोनोग्राफ तैयार की उस्ताद साहेब पर। इस से होने वाले फायदे को इस जोड़ी ने खान साहेब को समर्पित किया। उस्ताद की अंतिम इच्छा कि इंडिया गेट पर शहनाई बजाऊं, को भी इस दंपति ने पूरा करने की ठान ली थी। भारत सरकार ने इस कार्यक्रम को हरी झंडी दिखा दी थी।
लेकिन उस्ताद का सपना पूरा न हो सका........शहनाई सम्राट ने अलविदा कह दिया...।
गिरीजी,
ReplyDeleteशिवनाथ झा जी के बारे में तो बहुत कुछ पहले ही से जानता था मगर उनकी अभिव्यक्ति/टिप्पणी को आपने जिस तरह हमारे सामने परोसा बहुत अच्छा लगा...उनका अनुभव, उन्होने जो कहा और उनके बारे में बहुत कुछ....धन्यवाद ।
Good words.
ReplyDelete