मुझे आदमी का सड़क पार करना हमेशा अच्छा लगता है क्योंकि इस तरह एक उम्मीद - सी होती है कि दुनिया जो इस तरफ है शायद उससे कुछ बेहतर हो सड़क के उस तरफ। -केदारनाथ सिंह
Friday, March 16, 2007
ये मज़ा और कहां
लगभग २ साल के अंतराल के बाद अपने शहर आना हुआ. लगे हाथ बता दूं कि मेरा शहर पूर्णिया है. बिहार के सिमांचल जिलों में एक है. इन २ सालों मे मेरा शहर साफ बदल गया है. शहर क्या गांव भी बदलाव की आंधी में चकाचक नज़र आ रहा है. हां, यहां मैं यह स्पष्ट कर दूं कि बदलाव पूर्णतया पोजेटिव है, सो खुश हूं.
यहां के बदलावो पर एक रिर्पोताज़ तैयार करने का दिल कर रहा है. दरअसल मै अपने शहर में दो ही दिन टिकने वाला हूं, इसलिए काम फटाफट करने की इच्छा है. अपने मित्र इरोज़ से मैंने इस बावत बात की तो वह बदलते पूर्णिया पे लिख्ने को तैयार हो गया .पेशे से किसान इरोज़ बोलता काफी अच्छा है. आशा है कि शहर को वह एक अलग नज़र से "अनुभव" में पेश करेगा. यहां मैं यह भी बता दूं कि कल मैं एक गांव की यात्रा पे निकल रहा हूं. वहां से आप लोगो के लिए आंचलिक लोक गीतो और "नाच" की एक खेप भी लाउंगा. मिला-जुलाकर गांव-शहर की कई बातों को लेकर आपसे जल्द हीं बतियाने वाला हूं.
हो सकता है प्रस्तुत करने में देर हो जाये, क्योंकि इंटरनेट और बिजली की स्थिती कुछ अच्छी नही है, खैर आप विश्वास करें जल्द हीं इरोज़ की खैप अनुभव में नज़र आयेगी.
(इन दिनों मैं संपूर्ण बिहार के दौरे पे निकाला हूं. सभी जिलो का चक्कर लगाने वाला हूं. २१ मार्च से मुजफ्फरपुर जिले से घुमना शुरू होगा......)
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4 comments:
रिपोर्ट का इंतजार है!
...
अपनी नजरों से अनुभव किए बिहार को दिखाए... इंतजार है...
kaise ho girindra babu..kahan chale gaye bhai..yahan tumhari party ki sarkar ban ayi...chale aao ab...
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