कुछ व्यक्ति, कुछ संस्थाएं, कुछ इमारतें ऐसी होती हैं, जिनसे शहर की पहचान बनती हैं, जिन्हें देखकर, जिनसे मिलकर, सुनकर या फिर याद कर लोगों में एक नई ऊर्जा का संचार होता है! मेरे लिए प्रो. रत्नेश्वर मिश्र ऐसे ही शख्स हैं।
रत्नेश्वर बाबू का आज जन्म दिन है। एक फरवरी 1945 को उनका जन्म हुआ। वे आज भी जिज्ञासु छात्र की तरह आपको दिख जाएंगे, उम्र की माया से परे!
हम उन्हें घण्टों सुन सकते हैं। वे आपको जिज्ञासु बनाते हैं, वे आपको इतिहास के पन्नों से आपके लिए कथा चुनकर आपको देते हैं, वो भी रोचक अंदाज में! फिर आप उस कथा से अपने हिस्से का ज्ञान हासिल कर घर लौट आते हैं।
पूर्णिया जिला को पहचान दिलाने वालों में एक नाम रत्नेश्वर बाबू का भी है। यदि आप उनसे मिलेंगे तो ज्ञान का आडम्बर आपको कहीं नहीं देखेगा, न ही प्रचार-प्रसार की धमक...दिखेगा तो बस बहती नदी की तरह अविचल सूचनाओं का संग्रह!
वे आपको शब्दों के जाल में फंसाते नहीं मिलेंगे बल्कि एक अभिभावक की तरह शब्द की महत्ता बताते दिख जाएंगे।
वे जब भी पूर्णिया आते हैं और उनसे मिलने का यदि सौभाग्य हमें मिल जाता है तो लगता है किसी पुरानी डायरी को पलट रहा हूं।
गूगल सर्च, चैट जीपीटी आदि के इस दौर में जब हम मूल बात तक पहुंचने से बचते हैं, उस दौर में रत्नेश्वर बाबू हमें ठहरने की सलाह देते मिल जाते हैं, लिखते रहने की प्रेरणा देते हैं।
उम्र के इस पड़ाव में आकर भी आप अकादमिक जगत में सक्रियता से न केवल हिस्सा ले रहे हैं बल्कि मुखर भी हैं।
अंचल से लगाव रखने की वजह से रत्नेश्वर बाबू हमें आकर्षित करते आए हैं। मुझे याद है, दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर जब निकल रहा था तो बाबूजी ने बताया था कि पूर्णिया जिला का अपना समृद्ध इतिहास रहा है, यह एक जिला भर नहीं है, पूर्णिया एक दस्तावेज है!
हम जब भी रत्नेश्वर बाबू से मिलते हैं, उनको सुनते हैं तो बाबूजी की कही बात याद आती है कि 'पूर्णिया महज एक शहर नहीं, इतिहास का दस्तावेज है ' !
यदि आप पुराने पूर्णिया जिला की कहानियों से रूबरू होना चाहते हैं तो रत्नेश्वर बाबू के पास बैठ जाइए और बस एक सवाल उनके समक्ष छोड़ दें, वे कथाओं में आपको डूबो देंगे।
मेरे लिए वे एक ऐसे इतिहासकार हैं, जो समृद्ध कथावाचक हैं और संग ही शाश्वत शिशु भी हैं, जो हर दिन और हर किसी से कुछ सीखने के लिए उतारू है।
अनेक पुरस्कारों से नवाजे जा चुके रत्नेश्वर बाबू विविध संस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रहते आए हैं। आज उनका जन्मदिन है और हमें इस बात का गर्व है कि पूर्णिया को उनका सानिध्य प्राप्त है।
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ReplyDeleteइधर आदरणीय भीमनाथ झा की एक रचना ' नाममात्र ' ( मिथिला और मैथिली संदर्भ) को उलटते हुए प्रोफेसर रत्नेश्वर बाबू पर भी एक स्वतंत्र लेख पढ़ा और आनंदित हुआ। उन्हें जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। रेफरेंस में माहिर डाक्टर मिश्र को सादर प्रणाम
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