Friday, November 18, 2016

भरोसा एक बड़ी चीज़ है!


भरोसा एक बड़ी चीज है. हम-आप किस पर भरोसा करते हैं, सारा खेल उसी पर है. किसान को बीज पर भरोसा होता है, नौकरीपेशा को ऑफिस पर होता है, तो मरीजों को अपने डॉक्टर पर. भरोसा खत्म होते ही मन में उधेड़बुन शुरू.
प्राइवेट अस्पतालों की चकाचौंध भरी इस दुनिया में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सदर अस्पतालों को लेकर लोगों को अपने अनुभवों को सार्वजनिक करना चाहिए. मेरे गांव में एक हेल्थ सेंटर है, लेकिन वहां केवल दवाइयां दी जाती हैं. ऐसे में रोगी को इलाज के लिए या तो प्रखंड मुख्यालय जाना पड़ता है या फिर जिला मुख्यालय के सदर अस्पताल. ऐसी धारणा है कि जिनके पास पर्याप्त पैसा नहीं होता है, वे ही सरकारी अस्पतालों की तरफ रुख करते हैं.  
गांव का जीवछ बात-बात पर डॉक्टर के पास जाता है. डॉक्टर मतलब उसके लिए नर्सिंग होम है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र वह जाना ही नहीं चाहता है. एक दिन बातचीत में उसने कहा कि दिल्ली में सबसे  बड़ा अस्पताल है- एम्स. इस पर जीवछ ने कहा कि अस्पताल तो एम्स की तरह ही होना चाहिए. हमने बताया कि एम्स भी सरकारी संस्थान है. सरकारी शब्द सुन कर जीवछ उछल गया. उसने कहा तब तो सरकारी अस्पतालों पर हम लोगों को भरोसा करना चाहिए! 
जीवछ की बातों को सुन कर लगा कि भरोसा हम पैदा कर सकते हैं यदि सुविधाएं दी जायें. सरकारी संस्थानों के स्वास्थ्य सेवाओं के हाल पर गांव में रहनेवालों को बोलना होगा. हमारे एक मित्र ने तमाम सुख-सुविधाओं के बावजूद सरकारी अस्पताल में बच्चे को जन्म दिया है. वे कहते हैं सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर योग्य होते हैं. साथ ही अस्पताल में सरकार की ओर से तमाम इंतजाम कराये जाते हैं. ऐसे में लोगों को सरकारी अस्पतालों के प्रति अपना रवैया बदलना चाहिए. सरकारी अस्पतालों की साख ही कुछ ऐसी बन गयी है कि लोगों को वहां बेहतर इलाज के बाद भी भरोसा नहीं होता. सरकारी मशीनरी को ऐसी धारणा बदलने की दिशा में भी काम करना चाहिए. 
मेरे एक मित्र का कहना है कि जिस देश में राजनेताओं को सरकारी अस्पतालों से ज्यादा प्राइवेट अस्पताल पर भरोसा रहता हो, वहां आम लोगों को सरकारी अस्पतालों पर थोड़ा भरोसा कम होता है. कुछ दिन पहले एक खबर आयी थी कि तमिलनाडु के एक कलेक्टर ने अपनी छह साल की बेटी को एक सरकारी स्कूल में दाखिला दिलवाया है. भरोसा इसी का नाम है. सरकारी स्कूल में किसी अफसर, नेता, व्यापारी, उद्योगपति, डॉक्टर और किसी ऐसे व्यक्ति के बच्चे नहीं पढ़ते, जो उच्च या मध्यवर्ग में आते हैं. जो महंगे निजी स्कूल में नहीं जा सकते, वे किसी सस्ते निजी स्कूल में जाते हैं, लेकिन सरकारी स्कूल में नहीं जाते. 
ठीक वैसे ही जैसे इस वर्ग के लोग और उनके रिश्तेदार सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए नहीं जाते. एम्स और पीजीआइ जैसे कुछ अपवाद हो सकते हैं, लेकिन वहां भी वे तब जाते हैं, जब जेब जवाब दे जाती है या और कोई चारा नहीं होता. यदि हम सब मिल कर सरकारी संस्थानों पर भरोसा करने लगेंगे, तो स्थिति बदल जायेगी. 
यकीन मानिये, समाज की परिस्थितियां उस दिन बदलेंगी, जिस दिन हर राजनेता और अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने और इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में जाने लगेंगे. यह ऐसा समय है, जब हम भ्रष्टाचार जैसी समस्या पर खूब बात कर रहे हैं. ऐसे समय में हम सब यह भी सोचें कि जो कुछ भी सरकारी है, वह धीरे-धीरे निकृष्ट क्यों होता जा रहा है. आइये, हम सब मिल कर भरोसा करें.

2 comments:

  1. सटीक
    पर वो सब मिलकर वो कर रहे हैं
    ये करें तो सच में कुछ बात बने ।

    ReplyDelete
  2. http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/11/2016-7.html

    ReplyDelete