पिता की स्मृति अपने लिए आत्मालाप है। पिता जीवन में नायक की तरह दाखिल होते हैं, जो दुनिया को देखने का साहस देते हैं, अपनी नज़र से।
पिता जो अब हैं नहीं, लेकिन हैं, आसपास। श्याम तुलसी, कुछ फलदार पेड़, फूल - पत्ती और पानी की दुनिया के बीच वे स्थिर भाव से सबकुछ देखते नज़र आते हैं। उस जगह, जहाँ पिता हैं, वहाँ आम का पौधा, जो अब पेड़ बनने की राह पर आ चुका है, बाँह फैलाये मुस्कुरा रहा है।
ठंड के इस मौसम में तालाब का पानी दोपहर में बड़ा मायावी दिखता है, दो दिन बाद धूप जो नसीब हुआ है। उधर, धूप उगते ही पक्षियों की चहचहाहट बढ़ सी गई है।
पिता के जाने के बाद एक भाव आता है, जो कुछ कुछ पिता जैसा ही होता है, संयम का भाव! यह भाव जब आता है, एकांत का अहसास होता है।
पिता के जाने के बाद स्मृति में ढेर सारी कहानियाँ आती- जाती रहती हैं। उन कहानियों में एक पगडंडी होती है, जिस पर चलते चलते कभी दिख जाते हैं पिता! भरम ही सही लेकिन वो दिख जाते हैं, मुस्कुराते, कुछ कहते- समझाते...
पिता अब जहाँ हैं, उसके आसपास हरी- हरी दूब पर दिख जाती है कभी-कभी नीलकंठ चिड़िया। गुजरे आठ सालों में बाबूजी की दुनिया और भी बड़ी हो चली है। वे दिखा रहे हैं ढेर सारी पगडंडियां, जिस पर चलते हुए मिल जाते हैं लोगबाग।
मान्यताओं से इतर, एक राह होती है, जिसके सहारे हम पहुँचने की कोशिश करते हैं, पिता की स्मृति के समीप। पिता सब देखते हैं, अपने उन दिनों की कहानी सुनाते हैं, जिसमें माटी और माटी से जुड़े लोग होते हैं, हर रंग के...
पिता जाते नहीं हैं रहते हैं आसपास ही हमेशा दिशा देने के लिए |
ReplyDelete