सहज अभिनेता पंकज त्रिपाठी की एक बातचीत याद आ रही है, जिसमें अचानक उनकी आँखें भर आती है. वह पटना के दिनों को याद करते हैं, शहनाई के एक कार्यक्रम का जिक्र करते हैं, जिसमें बिस्मिलाह खान आये थे. वह साइकिल से कार्यक्रम स्थल पहुँचते हैं, सुनते हैं और फिर लौट आते हैं.
बरसों बाद जब वह अभिनय की दुनिया में आते हैं तो किसी शूटिंग के सिलसिले में भोपाल जाते हैं. सुबह होटल के कमरे में जब अखबार पढ़ते हैं तो पहले पन्ने पर बिस्मिलाह खान साहेब के निधन की खबर रहती है, वह रोने लगते हैं.. उस बातचीत में वह बताते हैं कि जब पटना में उन्होंने पहली बार शहनाई सुना तो उन्हें शास्त्रीय संगीत का कोई इल्म नहीं था, आज भी नहीं है, वह बिस्मिलाह खान से फिर कभी मिले भी नहीं लेकिन उनके निधन की खबर से वह टूट गए थे... यह बात आज इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि आँखों का बात बात पे भींग जाना बताता है कि आप मन से कैसे हैं, आप भीतर से कैसे हैं!
कबीर कहते हैं न -
"सहज सहज सब कोई कहै,
सहज न चीन्हैं कोय |
जिन सहजै विषया तजै,
सहज कहावै सोय || "
यह सहजता आभूषण से कम नहीं!
फिल्म ' तीसरी कसम ' का वह संवाद याद आ रहा है, जिसमें हीरामन पूछता है - मन समझती हैं न! हीरामन की आँखें पूरी फिल्म में बोलती है, अंचल की सहजता यही है. अंचल के लोग कहीं चले जाएं, लेकिन उनकी आँखों में आँगन -दुआर का स्पेस बना रहता है. ऐसे लोग अपने साथ अपने गाम -घर को लेकर चलते हैं. वैसे यह भी सच है कि अपने संग माटी को लेकर चलना साहस का काम है, यह सबके बस की बात नहीं!
आज यह सब लिखने के पीछे पंकज त्रिपाठी हैं. आज दोपहर चनका में उनका एक वीडियो देख रहा था, अमिताभ बच्चन के साथ, कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम का वीडियो क्लिप था. इसमें अमिताभ बच्चन जी अपने पंकज भैया से पूछते हैं बचपन के दिनों में गाम घर का कैसा वातावरण था? इस सवाल का जवाब पंकज त्रिपाठी जिस अंदाज में देते हैं, वह खुद में एक पाठ है. वह एक बार भी ग्राम जीवन को लेकर निराश नहीं दिखे, माचिस का घर में न होना, बिजली का न रहना, जिसे अक्सर समस्या कहकर हम गाँव को कोस देते हैं, उस मुद्दे पर सहज रहना, हर किसी के बस की बात नहीं और वह तब जब आगे अमिताभ बच्चन बैठें हों!
अमिताभ के सवाल पर पंकज त्रिपाठी कहते हैं - " मेरे घर से आठ किलोमीटर की दूरी पर एक रेलवे स्टेशन है रतन सराय. आठ बजे एक ट्रेन आती थी, मेल, अठबजिया मेल.हॉर्न भी नहीं, इंजन का साउंड इतना क्रिस्टल सुनाई देता था कि वह पूरे गाँव का अलार्म था... हम नेचर के करीब थे.ऐसा बचपन था. हमारे दोस्त तारे- सितारे थे.. यही कारण है कि शायद वह सहजता आज भी मेरे भीतर है. बरक़रार रखा हूँ उसे जाने नहीं देता.. "
गाँव के पिछड़ेपन को लेकर बात करने वालों को सहजता का यह संवाद सुनना चाहिए ताकि हम यह समझ सकें कि प्रकृति के करीब रहना क्या होता है. पंकज त्रिपाठी को सुनते हुए कबीर के संग फणीश्वर नाथ रेणु का जीवन भी याद आने लगता है. रेणु अपने साथ गांव लेकर चलते थे. इसका उदाहरण 'केथा' है. वे जहां भी जाते केथा साथ रखते. बिहार के ग्रामीण इलाकों में पुराने कपड़े से बुनकर बिछावन तैयार किया जाता है, जिसे केथा या गेनरा कहते हैं. रेणु जब मुंबई गए तो भी 'केथा ' साथ ले गए थे. दरअसल यही रेणु का ग्राम है, जिसे वे हिंदी के शहरों तक ले गए. उन्हें अपने गांव को कहीं ले जाने में हिचक नहीं होती थी. वे शहरों से आतंकित नहीं होते थे. रेणु एक साथ देहात -शहर जीते रहे, यही कारण है कि मुंबई में रहकर भी औराही हिंगना को देख सकते थे और चित्रित भी कर देते थे. रेणु के बारे में लोगबाग कहते हैं कि वे ग्रामीणता की नफासत को जानते थे और उसे बनाए रखते थे.
अमिताभ बच्चन के सामने कुर्सी पर बैठे पंकज त्रिपाठी को देखकर लगा कि ग्राम्य जीवन की नफ़ासत को माया के फेर में बचाकर रखना क्या होता है, इसलिए मैंने लिखा कि सदी के महानायक के सवालों का जवाब पंकज त्रिपाठी जिस अंदाज में देते हैं, वह खुद में एक पाठ है.
मेरे बाबूजी अक्सर चिकनी मिट्टी की व्याख्या करते थे. वे कहते थे कि चिकनी मिट्टी जब गीली होती है तब वह मुलायम दिखती है लेकिन जैसे ही तेज धूप और हवा में सूख जाती है तब माटी भी आवाज देने लगती है... उम्मीद है कि पंकज त्रिपाठी अपने अंचल को अपने भीतर यूँ ही संवार कर रखे रहेंगे.
और चलते - चलते पंकज त्रिपाठी के लिए रामदरश मिश्र जी की पंक्ति है -
"बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे,
खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे।
किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला,
कटा ज़िंदगी का सफ़र धीरे-धीरे।
जहाँ आप पहुँचे छ्लांगे लगाकर,
वहाँ मैं भी आया मगर धीरे-धीरे।"
Pankaj tripathy is undoubtedly excellent , but the way you narrated this is prominent 🙏🙏🙏🙏many many kudos to you sir .
ReplyDelete���� Pankaj tripathi ki saadgi k kya kehne..kamal bemisal ��
ReplyDeleteBeautiful presentation.... Will be waiting for next edition
ReplyDeleteपंकज त्रिपाठी जी का अभिनय जितना सरल, सहज और स्वाभाविक है उनके विषय में आपका आलेख भी उतना ही प्राकृतिक,मनभावन और सुंदर है।
ReplyDeleteनैसर्गिक लेखन के लिए शुभकामनाएं..💐💐
Pankaj Tripathi ji bahut yaad aati hai .I come from to barauli,Gopalganj.
ReplyDeleteItna sahityik Sahaj aur saral lekhan bahut Dinon Ki Baat padhne Ko Mila aapko bahut bahut Sadhu Baad
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteआपने स्वयं भी बेहद सुंदर तरीके से लिखा है। उदाहरणों को सटीक संजोया है।🙏
ReplyDelete🙏🙏
ReplyDeleteGreat 👍
ReplyDeleteजबरदस्त
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