Thursday, November 26, 2020

किसान, किसान किसान ...

किसान हर बार ठगे जाते हैं, उन्हें हर बार सड़क पर उतरना पड़ता है। यह सबसे मासूम सेक्टर है, जिसे हर बार कोई न कोई अपने ढंग से मैनेज करता रहा है।

पिछले छह साल से गाम - घर , किसानी करते हुए जिस नारे से नफ़रत हुई है, वह है : 'जय जवान, जय किसान ' ! यह  नारा नहीं बस जुमला है। 

किसान वही खड़ा है, जहां वह था, उसके खेत में बीज, खाद आदि देने वाला कॉरपोरेट हो गया है, और उपजाने वाला ऋण में फंसता रह गया। यहां इस गणित को समझना होगा, किसान को भी और सरकार को भी। किसान को किसानी पेशे की तरह लेना होगा, ऋण की तरह नहीं।

' जय किसान ' कह कर किसानी करने वालों को बरसों से ठगा जा रहा है।  अपनी मांगों को लेकर हर बार जब भी किसान सड़क पर उतरता है, लाठियां ही खाता है। किसान का असली संघर्ष तब शुरू होता है जब वह लौटकर खेत पहुंचता है। उसे अगली फसल के लिए खेत तैयार करना है, बीज चाहिए..! दरसअल हम संघर्ष करते रह जाते हैं, जो हमारा सच है।

आज सोशल मीडिया पर किसान शब्द ट्रेंड कर रहा है, जो तस्वीरें दिख रही है वह डराती है। किसान की आवाज़ कहां तक पहुंचेगी, यह तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन यह भी सच है कि किसानी कर रहे लोगों को संगठित होना होगा।

जिस तरह तस्वीर और वीडियो में सड़क पर भीड़ दिख रही है, गाड़ी और एंबुलेंस दिख रहे हैं, भीतर से लग रहा है कि कहीं इसे इवेंट न बना दिया जाए। नतीजा निकले, बस यही ख्वाहिश है।

एक किसान को क्या चाहिए? सवाल का जवाब बस एक ही है - फसल की वाजिब कीमत। बाद बाकी सबकुछ माया है, असल बात धान से लेकर अन्य सभी फसल की कीमत हासिल करना ही है। 

यदि कीमत ढंग से नहीं मिलेगी तो यकीन मानिए किसान किसानी करना छोड़ ही देगा, तब वह सिर्फ अपने लिए उपजाएगा,अपनी थाली के लिए अन्न, साग - सब्ज़ी उगाएगा। यह मत सोचिए कि हम मर जाएंगे, अपने लिए तो हम उपजा ही लेंगे।

निज़ाम को यह समझना चाहिए कि जिस तरह उद्योगपति उद्योग लगाता है मुनाफे लिए, हम किसान खेत में फसल भी मुनाफे लिए ही लगाते हैं, हम त्याग और करुणा की पाठशाला नहीं हैं, हमें भी जीवन के लिए सबकुछ चाहिए।

हमें सड़क पर उतरकर कैमरे के सामने या फिर लाठी और पानी से भिंगने का शौक नहीं है, हमें खेत में उतरने का शौक है, क्योंकि किसानी ही हमारा पेशा है। 

 #FarmerProtest

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