"पेट भरन देबे धान, पूर्णिया के बसैया रहे चदरवा तान ..." रेणु की यह बात जब भी याद आती है तो लगता है किसानी की दुनिया कितनी बदल गई है, लेकिन यह भी सच है कि इन सब बदलाव के बीच धान अपनी जगह बनाए हुए है।
आज जब धनरोपनी करते पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार की तस्वीर देखने को मिली तो मन खुश हो गया।
कादो में सने उनके पांव और हाथ में धान का बिच्चर देखकर पूर्णिया अंचल का कोई भी किसान खुश हो जाएगा।
हमारे यहां धान को बेटी का दर्जा प्राप्त है। धान हमारे लिए फसल भर नहीं है, वो हम सबके लिए ‘धान्या’ है। धान की बाली हमारे घर को ख़ुशी से भर देती है। साल भर वो कितने प्यार से हमारे घर आँगन को सम्भालती है। आँगन के चूल्हे पर भात बनकर या दूर शहरों में डाइनिंग टेबल पर प्लेट में सुगंधित चावल बनकर, धान सबका मन मोहती है। उसी धान की रोपनी की यह तस्वीर है।
पूर्णिया जिला में पहले धान का नाम बहुत ही प्यारा हुआ करता था, मसलन 'पंकज' 'मनसुरी', 'जया', 'चंदन', 'नाज़िर', 'पंझारी', 'बल्लम', 'रामदुलारी', 'पाखर', 'बिरनफूल' , 'सुज़ाता', 'कनकजीर' , 'कलमदान' , 'श्याम-जीर', 'विष्णुभोग' आदि। समय के साथ हाइब्रीड ने किसानी की दुनिया बदल दी। एक किसान के तौर पर मन तो यही करता है कि उन पुराने बीज को इकट्ठा कर पूर्णिया का बीज बैंक बनाया जाए, जहां हम अपने अंचल के धान को एक ब्रांड के तौर पर पेश करते।
बीज बैंक के बारे में लिखते हुए मुझे असम के जोरहाट के किसान मोहान चन्द्र बोरा याद आ रहे हैं। उन्होंने अन्नपूर्णा सीड लाइब्रेरी बनाई है, जहां धान की 270 किस्म के बीज हैं।
धान की रोपनी और कटाई की बात जब भी होती है तो मन में कई गीत भी गूंजने लगते हैं जो अब खेत में सुनाई नहीं देते हैं। सुख की तलाश हम फसल की तैयारी में ही करते हैं। एक गीत पहले सुनते थे, जिसके बोल कुछ इस तरह हैं -
"सब दुख आब भागत, कटि गेल धान हो बाबा..."
हम खेती किसानी दुनिया के लोग अन्न की पूजा करते हैं। धान की जब भी बात होती है तो जापान का जिक्र जरूर करता हूं। जापान के ग्रामीण इलाक़ों में धान-देवता इनारी का मंदिर होता ही है।
जापान में एक और देवता हैं, जिनका नाम है- जीजो। जीजो के पांव हमेशा कीचड़ में सने रहते हैं। कहते हैं कि एक बार जीजो का एक भक्त बीमार पड़ गया, भगवान अपने भक्तों का खूब ध्यान रखते थे। उसके खेत में जीजो देवता रात भर काम करते रहे तभी से उनके पांव कीचड़ में सने रहने लगे।
धान हमारे घर में ख़ुशहाली लाती है। महामारी और उसके बाद आई ढेर सारी परेशानी के बीच ऐसी तस्वीर हमें उम्मीद से भर देती है और हम पूर्णिया से असम और जापान की बात करने लगते हैं जिसके केंद्र में केवल और केवल धान ही है।
आह ! धान , शहर में रहने वाले हमारे जैसे खानबदोश ग्रामीणों को भी देखे छुए ज़माना हो गया फिर शहरी आबादी को तो ये भी पता नहीं होगा कि धान में से चावल निकलता है |
ReplyDeleteऐसी तस्वीरें मन में एक उम्मीद जगाती हैं कि सब कुछ इतनी जल्दी ही खत्म नहीं हो जाएगा | खूबसूरत पोस्ट गिरी भाई
किसी का ध्यान तो किसान की तरफ गया
ReplyDeleteधन्यवाद