Thursday, May 07, 2020

कुछ करते हैं

हम सब प्रवासी हैं। प्रवासी के दुख से खुद को मत चमकाइए। भरोसा है कि यह वक्त भी गुज़र जाएगा।

हम सब लौट रहे लोगों को देख रहे हैं। वे लौट रहे हैं। लौटते लोग की आंख में उम्मीद होती है। उनके उम्मीद को बनाए रखना है।

सोशल मीडिया पर ट्रेन, टिकट  से लेकर राज्य और केंद्र सरकार की बातों को लेकर लंबी लंबी बहस हो रही है। हर दल के लोग अपनी बातें रख रहे हैं और  प्रवासी निकल पड़े हैं, अपने घर - आंगन की ओर...

उनके दुख को लेकर बहस करने का अब समय नहीं है। समय रोटी दाल चावल का है , समय रोजगार सृजन का है उनके लिए जो लौट रहे हैं। 

फेसबुक -ट्विटर -इंस्टा आदि प्लेटफॉर्म पर बात करने का फायदा हो सकता है लेकिन जरूरत आपकी ग्राउंड पर है। 

हो सके तो अपने गांव में लौटे लोगों के लिए कुछ कर दीजिए, कुछ भी जो आप कर सकते हैं। हैश टैग से दूर हटकर कुछ करिए। कुछ रोजगार को लेकर, सरकार की योजनाओं को लेकर कुछ भी।

जरूरी नहीं कि हर बात को लेकर मुल्क के प्रधानमंत्री  और प्रांतों के मुख्यमंत्रियों को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाए। 

ग्राउंड पर हम मुखिया - वार्ड मेंबर से भी बात कर लौट रहे लोगों के लिए कुछ कर सकते हैं। लोग जहां लौट रहे हैं वहां उन्हें घर चलाने के लिए रोजगार मिले, इसके लिए कुछ करना है ग्राउंड पर। 

आंगनबाड़ी केंद्र से लेकर मनरेगा के प्रखंड स्तर तक के लोगों से मिलकर हम लौट रहे लोगों के लिए रोजगार की बात कर सकते हैं। कुछ करते हैं। 

यह वक़्त बहस को बनाए रखने का नहीं है बल्कि चूल्हा पर दाल रोटी चावल मिलता रहे, जरूरत पूरी हो, इसके लिए कुछ करने का है।

हम सबका अपना एक गांव है, यह वक्त हमसे कह रहा है कि  हम सब अपने अपने हिस्से के गांव के लिए कुछ करते  हैं। अफवाह पर ध्यान न देकर जमीन पर कुछ करते हैं लौट रहे लोगों के लिए।

भले ही उद्योग नहीं है, कम से कम सरकारी योजनाओं में उन्हें लाभ मिले, इसके लिए कुछ तो कर  ही सकते हैं। अधिकारियों तक तो बात पहुंचा ही सकते हैं। जॉब कार्ड की बात तो हो ही सकती है। 

जब फेसबुक या ट्विटर या फिर चैनल पर लंबी लंबी बात कर सकते हैं तो सोचिए ग्राउंड पर कितना कुछ जरूरतमंद लोगों के लिए किया जा सकता है।

आप अपने प्रखंड के अधिकारियों से लौट रहे लोगों के लिए बात कर सकते हैं, अपने जिलाधिकारी से बात कर सकते हैं।

हम लौट रहे लोगों के संवदिया बन सकते हैं। सोचिएगा तो हम आप कुछ भी कर सकते हैं।

4 comments:

चेतन कश्यप said...

जरूरी बात ।

मुँह के बदले हाथ चले, कलम चले ।

Manjit Thakur said...

जरूरी बात है यह.

Gopi Raman said...

इस मुश्किल वक्त में सबसे जरूरी यह सुनिश्चित करना है कि लौट चुके या लौट रहे प्रवासियों या उनके परिजनों को भूखा ना रहना पड़े।

Unknown said...

यह कुछ कहने से ज्यादा कुछ करने का समय है।