इन दिनों हर कोई महामारी के संक्रमण से बचने के लिए अपने घर में बंद है। हम सभी मोबाइल और अन्य डिजिटल माध्यमों से दुनिया जहान की बात करते हैं, दुनिया को देखते हैं, प्रतिक्रिया देते हैं।
हम सबकी सुरक्षा के लिए सरकार, स्थानीय प्रशासन और स्वयंसेवी लोग दिन रात एक किए हुए हैं। हम सबको स्वतंत्रता मिली है, हम उनकी आलोचना भी कर रहे हैं , यही लोकतंत्र की खूबसूरती है।
फणीश्वर नाथ रेणु का उपन्यास है - मैला आंचल, उसमें एक पात्र हैं - डॉक्टर प्रशांत। इन दिनों जब आप घर में हैं और रुचि हिंदी साहित्य में है तो इस पात्र को पढ़िए और महसूस करिए। इस कठिन दौर में आपके आसपास डॉक्टर प्रशांत मिल जाएंगे।
हम जिस जिला में हैं, उसका रेणु से रिश्ता रहा है, पूर्णिया। यहां के जिलाधिकारी राहुल कुमार की बात इन दिनों हर कोई कर रहा है। उनकी बात जब भी सुनता हूं , रेणु के डॉक्टर प्रशांत सामने आ जाते हैं।
यह शख्स हर किसी की मदद के लिए आगे आते हैं। जहां एक ओर जिलाधिकारी के तौर पर ये जिला की सेवा कर रहे हैं वही आभासी दुनिया में ट्विटर के प्लेटफार्म पर भी लोगों की समस्या सुलझा रहे हैं।
इस कठिन समय में रेणु के पात्र डॉक्टर प्रशांत को आप जब भी महसूस करेंगे तो लगेगा कि हमें अपने आसपास घटित होने वाली घटनाओं में अपनी जिम्मेदारी का परिचय देना चाहिए । राहुल कुमार और उनकी पूरी टीम की मेहनत और उसका परिणाम उसी जिम्मेदारी से हमें रूबरू कराती है।
देश भर में इस चुनौती भरे समय में प्रशासन के हर स्तर के अधिकारी , स्वास्थ्यकर्मी, कर्मचारी को जब आप देखेंगे और महसूस करेंगे तो पाएंगे कि वे सब 'व्यक्तिगत चिंताओं ' से दूर अपने जिला के लिए अनवरत मेहनत कर रहे हैं।
नर्स - कम्पाउन्डर से लेकर डॉक्टर तक, डाटा ऑपरेटर से लेकर कलेक्टर तक, सिपाही से लेकर पुलिस कप्तान तक, ये सभी जिस अंदाज़ में सेवा कर रहे हैं, उसके लिए शब्द हम खोज नहीं सकते। हम इन दिनों प्रखंड और पंचायत स्तर पर पदाधिकारी और कर्मचारियों को जोखिम उठाते देख रहे हैं, ये सब हमारे नायक हैं। कभी देखिएगा कोरोनटाइन सेंटर पर इन लोगों को, किस तरह ये सब मेहनत कर रहे हैं।
ये सब लोग इस कठिन वक़्त में हमारे लिए सड़क पर हैं, वे हमारे लिए अस्पताल में हैं, हमारे पास जरूरी वस्तु पहुंचते रहे, इसके लिए वे चिंतित हैं, अपनी पीड़ा भूलकर। हम कोरोना से बचने के लिए लॉक डाउन हैं, ये सब हमारे लिए जोखिम उठाकर जब शाम में घर लौटते हैं, उस क्षण की हमें कल्पना जरूर करनी चाहिए।
हम हर दिन अपने जिलाधिकारी के ट्वीट का इंतजार करते हैं, उसे पढ़कर अपने जिला की स्थिति को समझते हैं। ऐसे लोग इस दौर में अपनी पीड़ा भूलकर काम कर रहे हैं, ये सभी अपनी पीड़ा दूसरों पर नहीं थोपते, दरअसल यही उनकी शालीनता है, जो उन्हें अपनी पीड़ा का प्रदर्शन करने से रोकती है।
सुंदर गिरींद्र जी.... आजकल के तमाम डॉक्टर प्रशांत ही उम्मीद बने हुए हैं।
ReplyDeleteराजीव रंजन गिरि
मेरे डा० प्रशांत को नमस्कार है.. पूर्णिया के मैला आंचल पर राहुल कुमार सफाई की उम्मीद बन रहे. इनकी करमशीलता लुभावनी है। तभी तो सबकी निगाह उम्मीदें टिकी हैं इनपर
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