जब कोई बीमारी की चपेट में आता है, उस वक़्त हम उसकी सहायता सकारात्मक बातों के जरिए करते हैं। उस वक्त हम उसे सिस्टम की बुराई सुनाकर डराते नहीं हैं। आलोचना जरूरी है लेकिन उस वक्त जब हमें बीमार लोगों को ढाढस देना चाहिए, उस वक़्त हम उन्हें डराने लगते हैं।
यह वक्त एकजुट होने का है, मोदी के खिलाफ, मोदी के पक्ष में, सत्ता के पक्ष में , विपक्ष में हम लंबी बात करते रहे हैं और यकीन मानिए, ऐसी बातें हम भविष्य में भी करेंगे क्योंकि हम आप से ही लोकतन्त्र है। लेकिन यह समय एक ऐसी बीमारी से लड़ने का है जिसका सम्बन्ध न सत्ताधारी से है न ही विपक्ष के नेताओं से है और न ही लोकतंत्र या तानाशाही से है।
आंकड़ों पर हम बात बाद में भी करते रहेंगे, लेकिन अभी समय है लोगों को यह बताने का कि वे घर में ही रहें। मेरे जैसा आदमी जो हमेशा खुद को विपक्ष ही समझता है, वह भी आज यही सोच रहा है कि हम सभी के परिजन स्वस्थ रहें। जो गलत है, वो है लेकिन अभी जो है उसे स्वीकार करना होगा।
मंदिर - मस्जिद - गिरिजा घर - गुरुद्वारा की बात करते हुए हम कोरोना को कहीं और छोड़ देते हैं। धार्मिक न्यास आदि की बातें हम आगे भी करेंगे लेकिन अाज कम से कम लोगों को यह बताएं कि सोशल डिस्टेंस बनाना आज की जरूरत है। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म का उपयोग हम सकारात्मक ऊर्जा के प्रसार के लिए करें, बाद बांकी मोदी जी, राहुल जी, नीतीश जी, ममता जी की बातें हम आगे भी करते रहेंगे। लेकिन यह समय एक बीमारी से देश को बीमार हो जाने से बचाने का है।
वर्तमान स्थति पर सीधे सीधे दो टूक वो भी बिलकुल स्पष्ट | इस देश की ऎसी हालत ऐसे ही थोड़ी हुई है आज सुना है कि मधुबनी तक पहुंचे हुए हैं मरीज बेधड़क
ReplyDeleteबिल्कुल सत्य
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