विश्व के पर्यावरण को लेकर आज खूब बातें हो रही है। सोशल मीडिया आज पेड़-पौधों की तस्वीरों से भरने लगा है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जमीन पर हरियाली बनी रहे, इसके लिए हम अपनी तरफ से कोई ठोस कदम उठा रहे हैं ?
दरअसल हम सबकी जड़ें गाम-घर से जुड़ी है, जिनकी नहीं जुड़ी है, उनके परिचित में किसी न किसी का संबंध तो जरूर गांव से होगा। ऐसे माहौल में क्या आप इस गर्मी छुट्टी में अपने या अपने यार-दोस्त के गाम-घर , खेत-खलिहान जाने की योजना बनाए हैं?
हरियाली, पर्यावरण की बातें करते हुए हम भले ही कुछ देर के लिए खुश हो जाएं लेकिन उस जमीन पर कोई नहीं पहुंचना चाहता, जहां से हमारी जड़ें जुड़ी हुई है।
हाल ही में बिहार के मधुबनी जिला स्थित फुलपरास गया था। पिछले चार साल से फुलपरास से मेरा मन का रिश्ता बन गया है, लगता है यहां मेरा भी घर है। विज्ञापन, लेखन से जुड़े बड़े नाम Raj Jha राजकुमार झा का गांव है फुलपरास। देश-विदेश करते हुए वे हर दो-तीन महीने में अपने गाम पहुंच जाते हैं और एक ऐसी व्यवस्था तैयार करने में अपना समय देते हैं , जहां आदमी हरियाली के बीच जीवन का जी सके। राज झा फल वन तैयार कर रहे हैं, टैंक, छोटे पोखर में मछली पालन कर रहे हैं, कम संख्या में बत्तख, मुर्गी, बकरी, गाय, भैंस पालन कर रहे हैं।
आज जब विश्व पर्यावरण दिवस सोशल मीडिया पर हैशटैग रूप में ट्रेंड कर रहा है, ऐसे समय में राज झा सर का रूरल कैंपस प्रचार-प्रसार से दूर चुपचाप अपनी हरियाली पे मुस्कुरा रहा है, ठीक संयुक्त परिवार के उस बुजुर्ग की तरह, जिसे पता होता है कि जीवन के लिए सबसे जरूरी चीज क्या है।
एक -दो पौधों के साथ सोशल मीडिया पर तस्वीरें अपलोड करने वालों को राज झा के रूरल कैंपस की यात्रा करनी चाहिए । वे मुझे अक्सर कहते हैं कि किसानी करने वाले समाज को अपनी गलतियां निकालने की कोशिश करनी चाहिए और जिनके पास संसाधन है, पैसा है उन्हें प्रयोग करना चाहिए किसानी के उज्ज्वल भविष्य के लिए। कुछ दिन पहले ही उन्होंने मछली पालन विषय पर बातचीत के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें बायोफ्लॉक तकनीक से टैंक में मछली पालन को लेकर बातचीत हुई।
दरअसल पर्यावरण को लेकर केवल चिंतित होने से काम नहीं चलेगा, राज झा सर की तरह अपने जीवन के बहुमूल्य समय से वक्त निकाल कर हमें अपनी जड़ों की तरफ भी देखना होगा।
#WorldEnvironmentDay
नमस्कार !
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 15 जून 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सार्थक यथार्थवादी लेख।
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