"कम से कम एक ही गाँव के कुछ प्राणियों के मुरझाए ओठों पर मुस्कुराहट ला सकूं, उनके ह्रदय में आशा और विश्वास को प्रतिष्ठित कर सकूं। "
फणीश्वर नाथ रेणु की अमर कृति 'मैला आँचल' की यह पंक्ति जब पढ़ता रहा होता हूं कि तभी मन में फ़िल्म 'गुलाल' का यह गीत गूँज उठता है -
"जाते कहीं हैं मगर जानते न कि आना वहीं होता है। "
दरअसल आज रेणु की लिखी बातें और इस गीत का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि हाल ही में बिहार में हुए पंचायत चुनाव में कुछ ऐसे लोगों को जनता ने गाँव सँवारने का मौक़ा दिया है, जो अबतक महानगरों में थे लेकिन इस बार अपने गाँव- घर लौट आए, इस ख़्वाब के संग कि माटी के लिए कुछ करना है, बदलाव लाना है।
इस कड़ी में एक नाम अमृत आनंद का भी है। तीस साल के आनंद जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर गाँव बदलने आए हैं। वे इसबार कैमूर ज़िले के पासैन पंचायत से मुखिया चुने गये हैं।
जर्मन साहित्य के छात्र आनंद अब एक नई पारी खेलने जा रहे हैं, जिसमें उन्हें बहुत कुछ करना है। वैसे भी नई पीढ़ी के लिए गाँव-घर लौटना चुनौती है और ऐसे में आनंद का यह क़दम कई मायनों में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
चुनाव प्रचार के दौरान विपक्षी उन्हें 'दिल्ली का बाबू' कहते थे। कोई कहता कि चुनाव लड़कर लौट जाएँगे आनंद बाबू, लेकिन इन सबके बावजूद माटी से मोहब्बत करने वाले इस युवा का मन नहीं टूटा और वे शानदार बहुमत से विजयी हुए।
आनंद अब सबसे पहले गाँव को स्वच्छ बनाना चाहते है। इसके लिए वे सामुदायिक शौचालय बनवाए जाने की योजना बना रहे हैं।
अब ज़रा कैमूर से दरभंगा ज़िले के एक गाँव मनियारी चलते हैं। यहाँ हम आपकी मुलाक़ात शकुंतला काज़मी से कराने जा रहे हैं। उन्होंने भी दिल्ली की ज़िंदगी को एक झटके में छोड़ मुखिया चुनाव में हिस्सा लिया और शानदार बहुमत से जीत भी हासिल की।
दरभंगा ज़िले के बहादुरपुर प्रखंड के मनियारी पंचायत की नवनिर्वाचित मुखिया शकुंतला काज़मी ने राजनीति की अपनी पहली ही चुनावी पारी में जीत हासिल की है।
शकुंतला काज़मी मूल रूप से हरियाणा की हैं। उनका जन्म हरियाणा के महेंद्रगढ़ ज़िले में हुआ। हालाँकि उनकी पढाईं दिल्ली में हुई। उनके पिता दिल्ली में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे। इन सबके बावजूद शकुंतला ने पढ़ाई के लिए संघर्ष किया साथ ही महिलाओं के हक़ के लिए काम भी करती रही।
दिल्ली में उनकी मुलाक़ात नदीम अहमद काज़मी से होती है। बाद में दोनों की शादी होती है। ये जोड़ी अक्सर दिल्ली के अपने व्यस्त कार्यक्रम के बीच दरभंगा स्थित अपने गाँव आते -जाते रहते हैं। इस बार जब बिहार में पंचायत चुनाव का बिगुल फूँका गया तो आख़िर शकुंतला काज़मी ने गाँव में विकास की लौ जलाने की अपनी योजना को अमली जामा पहनाने के लिए मुखिया पद के लिए नामांकन दाख़िल कर ही दिया।
पति नदीम अहमद काजमी ने शकुंतला के इस फ़ैसले का समर्थन किया और फिर दोनों को गाँव वालों का आपार समर्थन मिला। शकुंतला ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 538 मतों के अंतर से पराजित किया। अब शकुंतला को अपने गाँव के लिए वह सबकुछ करना है, जिसके लिए वह सोच रही थी, जनता ने अब उन्हें मौक़ा दे दिया है।
ऐसे दौर में जब हर कोई गाँव से भाग रहा है, तब इस तरह की कहानियाँ सुनाने की ज़रूरत है ताकि गाँव से पलायन रुके साथ ही महानगरों से भी लोग अपनी जड़ की तरफ़ लौटें।
जीवन के हर क्षेत्र में हार- जीत तो लगा ही रहता है। ऐसे में मिट्टी से जुड़ना बहुत बड़ा काम है। 'मैला आँचल' में रेणु ने अपनी पात्र ममता के हवाले कहा है -"कोई रिसर्च कभी असफल नहीं होता है डॉक्टर! तुमने कम से कम मिट्टी को तो पहचाना है। मिट्टी और मनुष्य से मुहब्बत, छोटी बात नहीं। " तो आइये, इस भागमभाग जीवनशैली में आपसब भी अपने गाँव-घर के लिए कुछ वक़्त निकालिए, अपनी माटी के लिए कुछ अलग करिए।
फणीश्वर नाथ रेणु की अमर कृति 'मैला आँचल' की यह पंक्ति जब पढ़ता रहा होता हूं कि तभी मन में फ़िल्म 'गुलाल' का यह गीत गूँज उठता है -
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दरअसल आज रेणु की लिखी बातें और इस गीत का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि हाल ही में बिहार में हुए पंचायत चुनाव में कुछ ऐसे लोगों को जनता ने गाँव सँवारने का मौक़ा दिया है, जो अबतक महानगरों में थे लेकिन इस बार अपने गाँव- घर लौट आए, इस ख़्वाब के संग कि माटी के लिए कुछ करना है, बदलाव लाना है।
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शकुंतला काज़मी मूल रूप से हरियाणा की हैं। उनका जन्म हरियाणा के महेंद्रगढ़ ज़िले में हुआ। हालाँकि उनकी पढाईं दिल्ली में हुई। उनके पिता दिल्ली में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी थे। इन सबके बावजूद शकुंतला ने पढ़ाई के लिए संघर्ष किया साथ ही महिलाओं के हक़ के लिए काम भी करती रही।
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बहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteगांव से लोगों का पलायन देख दुःख होता है, लेकिन अफ़सोस हम ही इसके लिए दोषी भी हैं।
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ReplyDeletebahut khub kripya hamare blog www.bhannaat.com ke liye bhi kuch tips jaroor den
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ReplyDeleteज़रा सोचिए , अगर आपको कुछ Android Apps इनस्टॉल करते ही $1.00 मिल जाए तो ?
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