Saturday, May 02, 2015

इंटरनेट की दुनिया में बस्ती-बसाती गांव की कहानी

इंटरनेट अब हमारी जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक इंटरनेट का जाल बड़ी तेजी से बिछता चला जा रहा है। ऐसे में गांव-देहात भी कहां पीछे रहने वाला है।

इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाली विभिन्न कंपनियों का नेटवर्क अब गांव में भी पहुंच चुका है। ऐसे में हम आपको बिहार के एक ऐसे गांव की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसकी अपनी खुद की एक वेबसाइट है। आइए, हम आप बिहार के उस ऐतिहासिक गांव की यात्रा करें, जो देश-विदेश के लोगों को वेबसाइट के जरिए जोड़ने का काम कर रही है। 

वैसे तो सूचना संचार के इस डिजीटल युग मे वेबसाइट बनाना कोई बड़ा काम नहीं है और न ही कोई नई बात लेकिन गांव के लिए इस तरह की बातें करना सचमुच में एक क्रांतिकारी कदम है। वो भी एक ऐसे गांव के लिए जो हर साल कोसी की विभीषिका को झेलता है, जिसके लिए बाढ़ शब्द एक बुरे सपने की तरह है। उस गांव का नाम है- महिषी। 

बिहार के सहरसा जिला स्थित महिषी गांव की अपनी वेबसाइट है। वैसे तो मंडन मिश्र की जन्मस्थली होने के कारण महिषी किसी पहचान का मोहताज नहीं है। गौरतलब है कि मध्यकाल के आध्यात्मिक चिंतन के पुरोधा माने जाने वाले मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ के लिए करीब बारह सौ वर्ष पूर्व जगतगुरु शंकराचार्य यहाँ पहुंचे थे।

अतीत में और पीछे जाएँ तो पाते हैं कि मुनि वसिष्ठ ने हिमालय की तराई तिब्बत में उग्रतारा विद्या की महासिद्धी के बाद धेमुड़ा (धर्ममूला) नदी के किनारे स्थित महिष्मति (वर्तमान महिषी) में माँ उग्रतारा की मूर्ति स्थापित की थी।
इतिहास की पन्नों से जब हम बाहर निकलते हैं तो गांव घर की बातों को इंटरनेट के जाल पर खोजने बैठ जाते हैं तभी हमारी मुलाकात महिषी गांव  के दो युवा अमित कुमार चौधरी और अमित आनंद से होती है। इन दोनों ने मिलकर महिषी की वेबसाइट http://mahishi.org/ बनाई है। साइबर संसार में गांव-देहात का दखल मेरे लिए एक रोचक कहानी की तरह है।

महिषी की एतिहासिक बातों की जानकारी दुनिया के दूर दराज के लोगो तक पहुंचे इसके लिए इंटरनेट के जरिये महिषी पर आधारित वेबसाइट का निर्माण वर्ष 2011 मे किया गया था। महिषी डॉट ओर्ग के होम पेज की खुलते ही माँ उग्रतारा की लोगो को दर्शन होतें हैं जो कहीं न कहीं महिषी की झलक प्रदान करता है। महिषी का इतिहास
, कैसे महिषी देश के विभिन्न शहरों से आयें कहाँ ठहरे उसकी विस्तृत जानकारी वेबसाइट विजिटर के लिए है।

अमित कुमार चौधरी बताते हैं की वेबसाइट को देख कर राज्य के बाहर से लोग उनसे ईमेल के जरिए संपर्क कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली के एक सज्जन ने महिषी की देवी माँ उग्रतारा के नाम प्रसाद चढाने की इच्छा जाहिर की।
वहीं दूसरी ओर वेबसाइट के कॉडिर्नेटर अमित आनंद की इच्छा है कि इस वेबसाइट को लोगबाग एक सन्दर्भ वेबसाइट के रूप में लें। उन्होंने बताया कि वे चाहते हैं कि गांव की प्राचीन जानाकरियां लोग हासिल करें और इस पर शोध हो। वे गांव को अंतराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर लाना चाहते हैं।

गौरतलब है कि आज से चार-पांच साल पूर्व तक जब भी बिहार के महिषी इलाके की चर्चा आती थी तो लोगों के जेहन में जल-प्रलय की भयावह तस्वीर उभर आती है
, जिसका सामना पूर्वोत्तर बिहार के कुछ जिले करते आए हैं। 2008 के प्रलयंकारी बाढ़ की तस्वीरें आज भी हमें डरा देती है। लेकिन यह क्षेत्र अपने इतिहास में न जाने कितने गौरव समेटे है पर इसे पुनर्स्थापित करने की सुध किसी को नहीं है।

महिषी का एक स्वर्णिम पक्ष मध्यकाल के एक ऐसे विद्वान मंडन मिश्र की जन्मभूमि होना भी है, जिनके विचारों पर आज भी शोध हो रहे हैं। महिषी गांव के के नाम पर विधानसभा क्षेत्र का नाम भी है
, लेकिन परिसीमन करने वालों ने महिषी विधानसभा में महिषी गांव को शामिल नहीं किया।

महिषी में उग्रतारा मंदिर में देवी की मूर्ति के ऊपर महात्मा बुद्ध की मूर्ति है। शायद बुद्ध की मूर्ति यह दर्शाता है कि एक समय में मिथिला में भी बौद्ध धर्म का खासा प्रभाव हो गया था। साथ ही बहुत सारी प्राचीन मूर्तियां हैं, जिसकी सुरक्षा भगवान भरोसे है।

हिंदी-मैथिली के प्रसिद्ध साहित्यकार राजकमल चौधरी का जन्म महिषी में ही हुआ था। इसके अलावा नई पीढ़ी में भी इस गांव का साहित्य और समाज के अन्य क्षेत्रों में दखल है। महिषी कहानी कहते हुए मुझे देश के गांवों को पत्रकारिता के केंद्र में लाने के लिए मशहूर पत्रकार पी. साइनाथ की भी याद आ रही है। दरअसल उन्होंने इस साल की शुरुआत में एक पहल की है। साईंनाथ ने ग्रामीण पत्रकारिता के अपने वर्षों के अनुभव के बाद एक वेबसाइट शुरू की। वेबसाइट का नाम रखा है- परी (पीपल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया) यानी ग्रामीण भारत का जन संग्रहालय। ऐसे में महिषी गांव का इंटरनेट की दुनिया में सक्रिय रहना डिजीटल युग के लिए सुखद खबर है और मैं इसे साईंनाथ की परी से जोड़कर देखने लगा हूं।

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