सरसों के खेत में पंखुरी |
ठंड जाती है तो तुम आ जाती हो, हां तुम ठीक समझ रही हो मैं तुम्हारी ही बात कर रहा हूं। तुम्हारी ही। हां, तुम्हारी ही। तुम बसंत हो। पीले रंग से मोहब्बत कराने की आदत तुम्हारी ही संगत से आई है। एक मौसम हजार अफसाने लिए जब तुम आती हो तो मैं पत्ते को छूकर कह देता हूं कि तुम आ गई हो।
तुम सखी हो न, इसलिए आने की आवाज सुन लेता हूं। हल्की ओस के बूंद से पत्ते की चमक देखकर, तुम्हारी रंगत का पता चल जाता है। खेत में सरसों के पीले फूल के चारों ओर उड़ती तितलियां वाजिब ही कहती है कि तेरे रंग में ही नशा है, जिसमें डूबकर ही कोई तुझे पा सकता है।
तुम्हें याद है न बसंत, जब तुम्हें पहली बार मैं जान सका था। कुछ याद आ रहा है कि नहीं ?, अरे खेत के मंडेर पर चलते वक्त जब पहली बार सरसों के पौधे से हाथ मिले थे, एक सफेदी हाथ में लगी थी, पीले फूल स्याह काली कमीज से चिपक गए थे। मैं जानता हूं तुम मुझे देख रही थी। मेरी उमर कम थी लेकिन मन के उस कोने में तुमने दस्तक दे थी।
मैं जानता हूं, तुम्हारे प्यार करने का अंदाज ऐसा ही होता है। हर साल तुम कम दिनों के लिए आती हो लेकिन जैसे ही आती हो रंग में मुझे सरोबार कर लेती हो। जानती हो तुम्हारे आने की आहट से ही मैंने मेंहदी हसन को जाना। तुम्हारी वजह से मैंने उनकी गजलों को समझा।
अपने भीतर तुम्हारे होने के अहसास के बाद मैंने यह गजल सुनी- “मुझे तुम नजर से गिरा तो रहे हो , मुझे तुम कभी भी भुला न सकोगे, न जाने मुझे क्यूँ ये यकीन हो चला है, मेरे प्यार को तुम मिटा न सकोगे..।” तुम अपने संग एक हवा लाती हो, जिसमें अजीब सा नशा होता है। कई बार पूछना चाहा कि क्या तुम भी नशा करती हो?
रामचंदर को जानती हो न, जिसके साथ मैं बरसों पहले सरसों के खेत देखने गया था और उस पीले रंग के सफेदी के बहाने तुमसे मुलाकात हुई थी। उसीने बताया था कि तेरे साथ जो हवा आती है न उसमें गांजा से भी ताकतवर नशा है। एक ही कश में कोई भी बौरा सकता है? मैं उसी नशे की बात कर रहा हूं।
एक बात और जानती हो। गाम के ठाकुर स्थान का मंहत सरजनवा कहता है कि कबीर को जानने के लिए तुम्हें समझना जरुरी है। वैसे तो मैं सरजना की बातों में अक्सर उलझ जाता हूं लेकिन आज उसने तुम्हारे लिए जब यह कहा- “ न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से, उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?” तो मैं सोच में पड़ गया। इस सवाल का भी इस बार तुम जवाब देना।
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