Tuesday, February 21, 2012

उस आदमी को देखो

केदारनाथ सिंह की यह कविता मेरे लिए हरी बत्ती की तरह है, जो हर पल मुझे राह दिखाती है। मैंने इसे अपने ब्लॉग के हेडर पर भी लगाया है। एक पोस्ट पर आई टिप्पणी में यह सवाल उठाया गया कि मैंने क्यों नहीं कवि के नाम को उद्धृत  किया? सवाल जायज है लेकिन क्या करें, जो चढ़ जाता है, उसको लेकर मन में यह धारणा बन जाती है कि यह तो सब जानते होंगे, हालांकि यह धारणा ठीक नहीं है। अग्रज डॉ.अभिज्ञात जी का शुक्रिया, जिन्होंने चेताया।

पुनश्च: गलती तो गलती होती है, आज आप सब पढिए केदार जी यह कविता- उस आदमी को देखो


उस आदमी को देखो जो सड़क पार कर रहा है
वह कहाँ से आ रहा है
मुझे नहीं मालूम
कहाँ जायेगा
यह बताना कठिन है


पर इतना साफ़ है
वह सड़क के इस तरफ खड़ा है
और उस तरफ जाना चाहता है
उसका एक पाँव हवा में उठा है
और दूसरा उठने का इंतजार कर रहा है


जो उठा है
मैं सुन रहा हूँ वह दुसरे से कह रहा है
'जल्दी करो जल्दी करो
यह सड़क है'


और सडक ऐसी चीज है मित्रों
जो हमेशा वहीं  पड़ी रहती है
और चूँकि वह हमेशा वहीं पड़ी रहती है
इसलिए हर आदमी को हर बार
नये सिरे से पार करनी पड़ती है अपनी सड़क


तो वह आदमी जो सड़क पार कर रहा है
हो सकता है तीन हजार सात सौ सैंतिस्वी बार
पार कर रहा हो फिर वही सड़क
जिसे कल वह फिर पार करेगा
और उसके अगले दिन फिर
और हो सकता है अगले असंख्य वर्षों तक
वह बार बार उसी को
और सिर्फ़ उसीको पार करता रहे


देखो देखो वह अब भी वहाँ खड़ा है
उत्सुक और नाराज
और मुझे यह अच्छा लग रहा है


मुझे आदमी का सड़क पार करना
हमेशा अच्छा लगता है
क्योंकि इस तरह
एक उम्मीद सी होती है
की दुनिया जो इस तरफ़ है 
शायद उससे कुछ बेहतर हो
सड़क के उस तरफ़ |


केदारनाथ सिंह -1972

1 comment:

  1. की दुनिया जो इस तरफ़ है
    शायद उससे कुछ बेहतर हो
    सड़क के उस तरफ़ |

    गहरे और सुन्दर शब्द...इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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