१.
एक घर था, सामने खेत थे,
यादों में आकर बड़ा परेशां करता है वह घर,
पता चला कि परेशानी उस घर को भी हो रही थी/
सुना है कि परेशां होकर
अब उस घर ने ही मुंह मोड़ लिया है,
पता नहीं किससे, मुझसे या खुद से ....
२.
२.
उस घर ने पहली बार मुझसे कुछ कहा था/
आज भी याद है घर की वो बात/ घर ने कहा था /
छोड़ते वक्त मेरे दीवार से माटी खरोंचकर ले जाना,
जब भी याद आए/ उस माटी को बस छू लेना
३.
घर के भीतर ही मेहमानखाना था, एक ही घर था,
पर न जाने वह कितनों को समेटा था/
लेकिन उस घर में एक कमरा था /
जो हर वक्त अंधेरे में डूबा रहता था/
मुझे उस घर ने ही एक दफे कहा था /
कि मेरे उस कमरे में मेरा शुकून सोया हुआ है/
उस कमरे को अंधेरे से ही मोहब्बत है
४.
उस दिन हंस रहा था घर, कह रहा था तुमने जीना सीखा है/
लेकिन मैंने उससे एक बात छुपाई थी/
सुबह को मैंने छोड़ दिया था वह घर/
बरसों बाद पता चला कि घर ने /
यूं ही नहीं कहा था कि तुमने जीना सीख लिया है
५.
घर में शहनाई बज रही थी, सब खुश थे/
हमने उस रात घर को आंसू बहाते देखा था /
शायद उसी रात घर के उस अंधेरे कमरे में दीप जली थी/
अंधेरे कमरे का शुकून किसी ने छिना था
गांव की माटी के करीब कविताएं..बधाई..
ReplyDeleteअच्छे शब्द, गहरे भाव ...सार्थक रचना...बधाई
ReplyDeleteनीरज
बहुत खूब
ReplyDeleteसुंदर प्रभाव छोडती रचना.?
ReplyDeleteबेहद गहरे भाव.मन को छूती पंक्तियाँ.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति। धन्यवाद।
ReplyDeletepriy girindranaath ji
ReplyDeletebhayi , Fb se aapse mulakhaat hui aur aapke shbdo ke sadak par chalte chalte main aapke blog tak aa pahuncha. aapke shabdo me , maine apne aapko hi dekha hai . bahut khushi hui ,ki ishwar ne mujeh aapse milaaya .. aapke blog me ye post bahut hi acchi lagi.
namaskaar.
vijay