Wednesday, September 07, 2011

माया महाठगनी हम जानी

 

मन बौराता है तो कबीर को सुनता हूं, अलग-अलग आवाजों में। खासकर माया महागठनी.. पिछले कई सालों से पंडित छन्नू लाल मिश्रा को सुन रहा हूं। पंडित जी की आवाज मुझे इबादत की आवाज लगती है। वह बार-बार मुझे अपनी ओर खींचते हैं, सुर-ताल के संग। आप भी सुनिए उन्हीं की आवाज में माया महाठगनी हम जानी.. । अगली बार सुनाउंगा पंडित राजन साजन मिश्र की आवाज में जब मैं था तब हरि नहीं..

8 comments:

  1. कबीर वाणी जब सुनो जहाँ सुनो आनंद आ जाता है...आप कभी कबीर को 'आबिदा परवीन' की आवाज़ में सुनें...आहा हा...परमानन्द की स्तिथि बन जाती है...

    नीरज

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  2. जी नीरज जी, बात तो सही है। गुलजार ने यूं ही नहीं कहा है कि आबिदा की आवाज इबादत की आवाज है और नशा इकहरा ही अच्छा लगता है।

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  4. मेरे प्रिय संत और प्रिय स्वर! बहुत सुन्दर!

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  5. जानते हैं क्या पाया यहाँ आ कर? बड़ी स्वार्थी औरत हूँ मैं.एक कदम भी उठाती हूँ तो.... अपने स्वार्थपूर्ति की गुंजाइश की ओर उठाती हूँ.हा हा हा
    कबीर सुन रही हूँ और....आबिदा परवीन जी को सुन रही हूँ और.....कहीं वो मेरे पास आ कर बैठ गया हैं.आँखों से आंसू रुकने का नाम नही ले रहे.
    मेरा 'वो' जाने कैसे सही जगह पहुंचा देता है मुझे.
    खुश हूँ यहाँ आ कर.सदा खुश रहो.खूब उन्नति प्रगति करो.

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  6. कबीर वाणी जब सुनो जहाँ सुनो आनंद आ जाता है|

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  7. मुझे भी कबीर के दोहे और पद बार-बार बहुत कुछ सोचने विचारने पर बहुत मजबूर करते हैं..
    कितना सही कहा था...
    माया महाठगनी हम जानी
    त्रिगुण फाँस लिए कर डोले
    बोले मधुर वाणी...
    ...

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