Friday, August 12, 2011

बादलों का फेरा

इधर कई दिनों से बादलों का फेरा है. हवा अचानक तेज होती है, रुक जाती है और फिर बारिश का साथ देने लगती है। शहर की सड़कें सलेटी रंग पर कढ़ाई की तरह लग रही है। ऐसे में बस यही लगता है कि इस मौसम की कौन सी डोर पकड़ी जाए और कौन छोड़ी जाए।

उधर, बारिश की बूंदे तेज हो रही है और इधर मन के जंगल में एक आंधी आती है, हर जगह शोर, हवा की सांय-सांय। बादलों का फेर ऐसा होता है, पता नहीं था। कहीं पढ़ा या सुना था कि मौसम सांस की तरह है, उसे संभलना आता है और संभालना भी।

मन के भीतर जो जंगल है उसके कोने में इसी मौसम में सफाई की थी और फसल लगाई थी। मिट्टी-धूल के बीच हरे-हरे पौधे उग आए हैं। सांस की तरह मौसम को समझ रहा हूं। कि तभी बारिश-हवा सब थम जाती है। एक अजीब चुप्पी पूरे जंगल में छा जाती है। बूढ़े हो चले बरगद के एक कोने से रोशनी सी आती है, जंगल के बीच में बहर रही नदी में वेग आ जाता है लेकिन इन सबके बीच भी चुप्पी कायम है। तो क्या यही है-शाश्वत बस सन्नाटे रे...या फिर घाट ना सूझे, बाट ना सूझे, सोझे न अप्पन हाथ....

6 comments:

  1. यहां तो कविता बरस कर बहने लगी है.

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  2. गद्य में भी पद्य सा ही आनंद !

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  3. गिरीन्द्र जी , मन को सुकून तो प्रकृति की गोद में ही प्राप्त होता है। जीवन की प्रथम पाठशाला 'प्रकृति' ही है। सारे पाठ इसी के माध्यम से सीखे जा सकते हैं। कर्म में सतत लगे रहना , प्रतिदिन उगते और ढलते सूरज से सीखा जा सकता है। मौसम का आना जाना , थोड़ा विचलन भी , हमें बहुत कुछ सिखाता है। हमारा जीवन तो एक कर्म-भूमि है , जिसमें सतत और अविरल चलते रहना है कर्तव्य पालन के साथ और प्रेरणास्रोत होगी हमारी प्रकृति--ये बादल, ये बारिश, ये हवाएं , धुप और हरियाली....

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  4. .

    It's a pleasure to be your 49th follower.

    regards,
    Divya

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  5. शुक्रिया दिव्या जी। क्या आपकी ई-मेल आईडी मिल सकती है।

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  6. Below is my email address--

    zealzen8@gmail.com

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