युव-राज |
अब अपनी कहानी, शनिवार मेरे लिए घोषित छुट्टी होती है, मतलब साप्ताहिक अवकाश। इसलिए कभी-कभार क्रिकेट का लुत्फ उठाने वाला शख्स भी शनिवार को अंतिम ऑवर में ही टीवी स्क्रीन के करीब पहुंचा, उससे पहले अपने ढेर सारे काम निपटाए, शाम में अपने हाथों से लजीज सेंडविच तैयार की और फिर हमदोनों ने उसका आनंद लिया। रात में ब्लू जर्सी वालों की जीत पर हम भी मुस्कुराए लेकिन कानपुर के सिविल लाइंस स्थित कृष्णा टॉवर की नौवीं मंजिल पर इससे बढ़कर बहुत कुछ हो रहा था। यहां जीत के लिए एक-एक रन का हिसाब हमारे सहकर्मी ले रहे थे।
क्रिकेट के तंदरूस्त जानकार दोस्तों ने चैनल युगी एक्सपर्ट की तरह टिप्पणी रसीद रहे थे। हमारे एक सहकर्मी पुनीत भाई इन सारी वारदातों को अपने मोबाइल में कैद कर लिया था। रविवार को मैंने इसका भरपूर आनंद उठाया। जैसे ही धोनी ने छक्का जड़ा हमारे दीपक मिश्रा भाई भावुक हो गए। वीडियो को देखकर ऐसा लगा मानो वे जन्म-जन्मांतर से इस पल का इंतजार कर रहे थे। एक पक्के क्रिकेट आशिक की तरह उन्होंने कहा- ये कांबली के आंसूओं का हिसाब है (युवराज की विजयी आंसू पर उनकी टिप्पणी)। जब दीपक भाई यह बोल रहे थे तब उनकी आवाज भर्रायी से जान पड़ रही थी। वे एक-एक खिलाड़ी को टीवी स्क्रीन पर देखकर सटीक टिप्पणी कस रहे थे। वहीं शायद धोनी की बल्लेबाजी पर मय़ंक भाई ने कहा- सारे मिथक टूट गए.....।
हमारे एक अन्य सहकर्मी अरुण त्रिपाठी सेंसर बोर्ड को एक किनारे करते हुए कंमेट्री कर रहे थे। वे पूनम पांडे को खोज रहे थे, शायद वे पाकिस्तान फोन लगाने की बात कर रहे थे, लेकिन उन्होंने एक अहम टिप्पणी भी की, जिसमें उन्होंने कहा- अब चैनलों और अखबारो में यादों के लिए ट्रॉफी लिए कपिल देव नहीं दिखाए जाएंगे....।
पुनीत भाई के सौजन्य से ऑफिस चालीसा देखकर यह विश्वास हो गया कि हां, इस मुल्क में एक धर्म और है, और वह है क्रिकेट। तभी मेरी नजर फेसबुक पर अजय ब्रह्मात्मज की पोस्टिंग पर गई-
‘’ इंडिया जीत गया, भारत रीत गया। प्लीज, इस जीत में 1 अरब 21 करोड़ भारतीयों को बगैर उनकी सहमति के शामिल न करें। करोड़ों को तो मालूम ही नहीं कि उन्हें किस जीत में शामिल बताया जा रहा है। इस जीत में देश की भारी हार छिपी है। मुझे 'पार' के नौरंगिया और रमा याद आ रहे हैं। वे बिहार की हिंसा से भाग कर कलकत्ता पहुंचे है। वहां 1983 के वर्ल्ड कप का जश्न मनाते लोग उन्हें छेड़ते हैं। आज 2011 में वह छेड़खानी पूरे देश से हो रही है। देश के कोने-कोने में मीडिया केजरिए रंग में भंग डाल रहे नौरंगिया और रमा को छेड़ा जा रहा है। मुमकिन है कोई फिल्मकार अपनी स्क्रिप्ट में इस छेड़खानी को दर्ज कर रहा हो।“
पुनीत भाई के सौजन्य से ऑफिस चालीसा देखकर यह विश्वास हो गया कि हां, इस मुल्क में एक धर्म और है, और वह है क्रिकेट। तभी मेरी नजर फेसबुक पर अजय ब्रह्मात्मज की पोस्टिंग पर गई-
‘’ इंडिया जीत गया, भारत रीत गया। प्लीज, इस जीत में 1 अरब 21 करोड़ भारतीयों को बगैर उनकी सहमति के शामिल न करें। करोड़ों को तो मालूम ही नहीं कि उन्हें किस जीत में शामिल बताया जा रहा है। इस जीत में देश की भारी हार छिपी है। मुझे 'पार' के नौरंगिया और रमा याद आ रहे हैं। वे बिहार की हिंसा से भाग कर कलकत्ता पहुंचे है। वहां 1983 के वर्ल्ड कप का जश्न मनाते लोग उन्हें छेड़ते हैं। आज 2011 में वह छेड़खानी पूरे देश से हो रही है। देश के कोने-कोने में मीडिया केजरिए रंग में भंग डाल रहे नौरंगिया और रमा को छेड़ा जा रहा है। मुमकिन है कोई फिल्मकार अपनी स्क्रिप्ट में इस छेड़खानी को दर्ज कर रहा हो।“
अजय जी की यह टिप्पणी हमें कई चौराहों पर सोचने के लिए मजबूर करती है। तभी नजर ब्रजेश झा के स्टेट्स गई –
“ भारत जीता तो हमसब झूम उठे हैं। सड़कों पर हैं। पर, दूसरा पक्ष भी है। 73 वर्ष के अन्ना हजारे भ्रष्टाचार मिटाने व जनलोकपाल बिल के लिए 5 अप्रैल से भूख हड़ताल पर जा रहे हैं। उनकी इच्छा है कि देश की जनता आगे आए। यकीनन, हमें उनके साथ राष्ट्रधर्म निभाने के लिए आगे आना चाहिए। आप क्या सोचते हैं ? ”
“ भारत जीता तो हमसब झूम उठे हैं। सड़कों पर हैं। पर, दूसरा पक्ष भी है। 73 वर्ष के अन्ना हजारे भ्रष्टाचार मिटाने व जनलोकपाल बिल के लिए 5 अप्रैल से भूख हड़ताल पर जा रहे हैं। उनकी इच्छा है कि देश की जनता आगे आए। यकीनन, हमें उनके साथ राष्ट्रधर्म निभाने के लिए आगे आना चाहिए। आप क्या सोचते हैं ? ”
वाकई काफी बढ़िया है...अच्छा लगा। शुक्रिया।
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