आज मुन्नवर राना को पढ़ने का बहुत मन किया तो नेट को खंगाला। कविता कोष पर वह मिले। उन्हें पढ़ते वक्त पाठक एक अंश में खुद को भी पढ़ता है, ऐसा मेरा मानना है। बतौर पाठक, आप भी पढिए.
शुक्रिया
गिरीन्द्र
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1
कहीं भी छोड़ के अपनी ज़मीं नहीं जाते
हमें बुलाती है दुनिया हमीं नहीं जाते ।
मुहाजरीन से अच्छे तो ये परिन्दे हैं
शिकार होते हैं लेकिन कहीं नहीं जाते ।।
2
उम्र एक तल्ख़ हक़ीकत है मुनव्वर फिर भी
जितना तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता ।
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता,
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता ।।
3
मियाँ ! मैं शेर हूँ, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती,
मैं लहज़ा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती ।
किसी दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था,
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़वाहट नहीं जाती ।।
4
हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है ।
दिखाते हैं पड़ौसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो
कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है ।।
शुक्रिया
गिरीन्द्र
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1
कहीं भी छोड़ के अपनी ज़मीं नहीं जाते
हमें बुलाती है दुनिया हमीं नहीं जाते ।
मुहाजरीन से अच्छे तो ये परिन्दे हैं
शिकार होते हैं लेकिन कहीं नहीं जाते ।।
2
उम्र एक तल्ख़ हक़ीकत है मुनव्वर फिर भी
जितना तुम बदले हो उतना नहीं बदला जाता ।
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता,
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता ।।
3
मियाँ ! मैं शेर हूँ, शेरों की गुर्राहट नहीं जाती,
मैं लहज़ा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती ।
किसी दिन बेख़याली में कहीं सच बोल बैठा था,
मैं कोशिश कर चुका हूँ मुँह की कड़वाहट नहीं जाती ।।
4
हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है ।
दिखाते हैं पड़ौसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो
कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है ।।
बेहतरीन लेखन से परिचय करा दिया। एक से बढकर एक अंश बहुत ही उम्दा। शुक्रिया जी।
ReplyDeletebahu badhia bhaisaab ye sb aap hi khoj skte hain aapki lekhni ka jabab nae
ReplyDeleteगिरीन्द्र भाई इस चयन के लिए शुक्रिया।
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