Wednesday, March 18, 2009

खामोश रात

रात आज खामोश है
घुप्प अंधेरे में,
मन चुप है
सोचता हूं मैं भी खामोश हो जाऊं
कुछ ही पल के लिए,
लेकिन खामोश
रात की खामोशी आज अच्छी लग रही है
पंखे की हवा और उसकी आवाज भी
मेरी खामोशी को तोड़ नहीं पा रही है
मन दौड़ भी नहीं रहा है
तन डोल भी नहीं रहा है
बस खामोशी में डूबा जा रहा हूं
अभी बस बुदबुदा रहा हूं
ये पंक्तियां-

"तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं
कमाल यह है कि तुम्हें फिर भी यह यकीन नहीं"


और फिर याद आता है गुलाल
और फिर उसका गीत

जैसे दूर देश के टावर में घुस गयो रे ऐरोप्लेन...........

4 comments:

  1. बढ़िया !
    घुघूती बासूती

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  2. कहते हैं कि-
    दर हकीकत कुछ दिनों से सेल घड़ी का खत्म था।
    और मैं नादां ये था समझा वक्त है ठहरा हुआ।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. बढिया लिखा है ... बधाई स्‍वीकारें।

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