
खैर,आज सुबह नेट पर फणीश्वर नाथ रेणु और होली को लेकर जानकारियां जुटा रहा था। गूगल ने खोज कर बीबीसी का पन्ना थमा दिया। बीबीसी के बिहार संवाददाता मणिकांत ठाकुर की चार साल पुरानी रपट हाथ में आई, जिसमें उन्होंन रेणु और लतिका जी के बारे में लिखा है।
मणिकांत ठाकुर ने लिखा है कि पटना में लतिका रेणु उनके पड़ोस में रहती हैं. उनसे बातें करते हुए एक दिन उन्होंने रेणु जी की कुछ ख़ास आदतों के बारे में उन्हें बताया। लतिका जी ने बताया कि जब कभी रेणु कहते कि लतिका भाँग पीसो तो मैं समझ जाती कि रेणु लिखने के मूड में आ गए हैं। उनकी कई प्रसिद्ध कहानियों (तीसरी क़सम समेत) के सृजन का संबंध भाँग से रहा है तो होली को हम कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं।
वैसे ये जानकर नए लेखकों को भाँग सेवन की प्रेरणा न मिले ऐसी कामना लतिका जी करती है इसलिए क्योंकि उन्होने रेणु जी का स्वास्थ्य बिगड़ते देखा था।
लेकिन फागुन की मस्ती क्या भंग की पिनक से कम होती है ? हमारे यहां कहते हैं न जो जीए सो खेले फाग।
जय हो भाँग की।
ReplyDeleteNik Gap kahalu yau...
ReplyDeleteBadhai