बस यही पूछ रहा था आज मेरा मन। ऑफिस में काम के साथ राजनीति की भी पाठ पढ़ने की आदत को आत्मसात करने की कोशिश कर रहा था। ये बातें अक्सर मन पूछता है, कि काम को तो तू सीख रहा क्या राजनीति भी सीख रहा है।
शुरुआत में तो इसे समझ नहीं पाया लेकिन धीरे-धीरे इसे सीखने लगा। छोटी-छोटी बातों में परेशान रहने के बजाए अब हम राजनीति की पगडंडी में चलने लगे। वैसे तो हमारा परिवेश हमें घर से ही इन बातों को समझा रहा था, लेकिन हम ऐसे कि इससे दूर रहने लगे थे। खैर यहां आने पर इसे समझने लगे कि काम के साथ ये भी जरुरी है।
दो गुटों में बंटा कामकाज का वातावरण अब हमें खुली चुनौती देने लगा था। हम तो यहां भी अव्वल होने के लिए कई फार्मूले को प्रयोग किया, तभी गुरुदेव ने बताया कि बेटा काम ऐसे नहीं चलेगा अब फ्रंटफूट पर आओ और गेंद को सीधे मारो ...जिस तेजी में गेंद आए बल्ले को उसी तेज में चलाओ।
यह फार्मूला अच्छा लगा या बुरा तुरंत कह नहीं सकता लेकिन सच्चाई यही है कि इससे आत्मविश्वास जरुर बढ़ा। हम सलामी बल्लेबाज बनने के लिए जो आतुर हो गए थे। खैर शुरुआत में आउट होने का डर मन से भगाने में कामयाब रहा।
हमारे गांव में भी राजनीति होती है लेकिन वहां वह धुव्रीय न होकर एक ही खूंटे में बंधा है, सो ऐसी दिक्कत का सामना कभी नहीं किया। यहां दिक्कतों का पहाड़ लगा था। अपने में अत्याचार सहने की शक्ति को बढ़ाने के बजाए उसका मुकाबला करना यहीं सीख रहा हूं। बेबाक हो जाने के साथ-साथ मन में परत दर परत जमाने की कोशिश करने लगा ॥ ॥ लाइक फ्रीजर डियर।
2 comments:
दुनिया में आ ही गए हैं...तो देखते जाइए .... क्या क्या सीखना पडता है।
ye sab bhi seekhen jald se jald warana........
फर्शी सलाम
क्या बात कही है सर
aap ज्ञानी महा ज्ञानी हैं
वाह सर वाह
मैंतो अब तक ये समझ रहा था आपने तो एंगल ही बदल दिया आदि आदि...
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