सुबह जब सूरज उगने वाला होता है,
घर से निकलता हूं ऑफिस के लिए
ठंडी हवा से घर की याद आती है,
ऐसे मौसम में आग जलाकर बैठा करते थे
हम अपने घर में.....
आज भी बाबूजी कमरे में आग तापते हैं...
कहते हैं हीटर का असर कुछ नहीं होता हम पर
हमें चाहिए आग हीं........
याद आती है पुरानी बातें..मास्टर साब की..
उनका कहना-
विद्यार्थी को आग से दूर रहना चाहिए....
आलस्य से भर देगा यह आग...
यादें कुहासे में खो सी गई
मैं डीएनडी फ्लाईवे के पास पहुंच चुका था..
ठंड का पता नहीं चल पा रहा था
गाड़ी के शीशे जो चढ़ा चुका था मैं....
घर से निकलता हूं ऑफिस के लिए
ठंडी हवा से घर की याद आती है,
ऐसे मौसम में आग जलाकर बैठा करते थे
हम अपने घर में.....
आज भी बाबूजी कमरे में आग तापते हैं...
कहते हैं हीटर का असर कुछ नहीं होता हम पर
हमें चाहिए आग हीं........
याद आती है पुरानी बातें..मास्टर साब की..
उनका कहना-
विद्यार्थी को आग से दूर रहना चाहिए....
आलस्य से भर देगा यह आग...
यादें कुहासे में खो सी गई
मैं डीएनडी फ्लाईवे के पास पहुंच चुका था..
ठंड का पता नहीं चल पा रहा था
गाड़ी के शीशे जो चढ़ा चुका था मैं....
गाडी के शीशे चढा चुका था मैं
ReplyDeleteऔर इस तरह अपने आप को बचा लिया था
उन यादों से जो मुझे परेशां करने के सिवा कुछ नही करतीं
जिनसे दूर है मेरी मंजिल ...
लेकिन मैं इनसे पार नही पता
यादों से बेशर्म शै जीवन में कोई नही.......
सुंदर यादें और उन्हें भूलने को मजबूर हम सब ....अब ठंड भी शायद उतना नहीं रह गया है।
ReplyDeleteshisha chadhne ke bad thand kya duniya hee badal jatee hai. ham sab apne-apne shishe se ladte hue log hain bhai.
ReplyDeletebahut achha.
ranjit