ऊं जैसी उपस्थिति से संगीत की महफिल लूट लेने वाले पंडित किशन महाराज विश्व पटल पर तबले को एक शानदार मुकाम और शोहरत दिलाने में अपने योगदान के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। सन 1923 में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन बाबा विश्वनाथ की जिस काशी नगरी में किशन महाराज जन्मे थे उसी काशी में 4मार्च,2008 को सोमवती अमावस्या के दिन वे और उनके तबले की थाप हमेशा के लिए खामोश हो गई।
तबले के कुल छ: घरानों में बनारस घराना सबसे युवा घराना है। पिछले सौ सालों के इतिहास में पंडित भैरव सहाय, उस्ताद आबिद हुसैन खान, उस्ताद अजीम खान, अहमद जान थिरकवा, पंडित कंठे महाराज, पंडित अनोखे लाल और पंडित शामता प्रसाद के बाद किशन महाराज संगीत के आकाश के सप्त-ऋषियों के बीच वशिष्ठ के रूप में माने जाते थे।
इन सभी महान तबला वादकों की फेहरिस्त में पंडित किशन महाराज सम्पूर्ण तबला वादक के रूप में उभर कर सामने आए। पिता पंडित हरि महाराज के निधन के बाद उनके धर्मपिता और ताऊ पंडित कंठे महाराज ने उन्हें गोद ले लिया। मात्र ग्यारह वर्ष की आयु से ही उन्होंने तबले पर थाप देना शुरू कर दिया था। बचपन से शुरू हुआ पंडित जी का तबले के साथ शास्त्रीय संगीत का सफर अंत समय तक अनवरत जारी रहा।
जानीमानी शास्त्रीय गायिका शुभा मुद्गल कहती हैं,'महाराज जी एक सिद्ध पुरुष थे।' तबला वादक के रूप में पंडित किशन महाराज शास्त्रीय संगीत की दुनिया के बेताज बादशाह तो थे ही साथ ही उनकी रूचि अन्य चीजों में भी उतनी ही थी। घोड़े वाली बग्घी और टमटम की सवारी, निशानेबाजी और मृदंग जैसे शौक भी किशन महाराज के जीवन के अभिन्न अंग रहे। वयोवृद्ध शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी बताती हैं कि पंडित जी तबले के विद्वान तो थे ही साथ ही मूर्ति कला और चित्रकला में भी पारंगत थे।
किशन महाराज ने अपने जीवन काल में कई नामचीन कलाकारों जैसे पंडित रविशंकर, उस्ताद अमजद अली खान, वी।जी जोग, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ न सिर्फ संगत की बल्कि भविष्य के उदीयमान कलाकारों के साथ भी संगत करके उनका उत्साहवर्धन किया। संगीत में योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री (1973), पद्म विभूषण (2002) और उस्ताद हाफिज अली खान अवार्ड (1986), संगीत नाटक अकादमी अवार्ड (1984) से नवाजा गया।पंडित जी के साथ संगत करने वाले कलाकार उनके सान्निध्य मात्र से ही अभिभूत रहते थे। उनके सान्निध्य को करीब से महसूस करने वाले प्रख्यात शास्त्रीय गायक राजन- साजन मिश्र कहते हैं कि उनका स्वतंत्र तबला वादक अलग-अलग अनुभूतियां दे जाता था,तो गायिका सोमा घोष का मानना है कि महाराज जी जैसी महारत वाला कोई तबला वादक दूर-दूर तक नहीं दिखाई देता है।
अच्छा आलेख. श्रृद्धांजलि.
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