आज गुलजार की नज़र से हिंदुस्तान को देखिये -
हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं
एक है जिसका सर नवें बादल में है
एक है जिसका सर नवें बादल में है
दूसरा जिसका सर अभी दलदल में है
एक है जो सतरंगी थाम के उठता है
एक है जो सतरंगी थाम के उठता है
दूसरा पैर उठाता है तो रुकता है
फिरका-परस्ती तौहम परस्ती और गरीबी रेखा
फिरका-परस्ती तौहम परस्ती और गरीबी रेखा
एक है दौड़ लगाने को तैयार खडा है
‘अग्नि’ पर रख पर पांव उड़ जाने को तैयार खडा है
‘अग्नि’ पर रख पर पांव उड़ जाने को तैयार खडा है
हिंदुस्तान उम्मीद से है!
आधी सदी तक उठ उठ कर हमने आकाश को पोंछा है
आधी सदी तक उठ उठ कर हमने आकाश को पोंछा है
सूरज से गिरती गर्द को छान के धूप चुनी है
साठ साल आजादी के…
साठ साल आजादी के…
हिंदुस्तान अपने इतिहास के मोड़ पर है
अगला मोड़ और ‘मार्स’ पर पांव रखा होगा!!
हिन्दोस्तान उम्मीद से है..
हिन्दोस्तान उम्मीद से है..
3 comments:
गिरीन्द्र जी ये तो बहुत सटीक बात आपने कही
बहुत बढिया रचना प्रस्तुत की है।बधाई\
कमाल की पेशकश. बहुत ही उम्दा .... शुक्रिया पहुंचाने का.
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