कई दिनों से इच्छा थी कि अविनाश को लिखूं। मैं इसे चुनौती मानता था, और अभी भी मानता हूं। आप किसी के बारे में कुछ लिखें इसके लिए आपको उस शख्स के बारे में काफी कुछ जानने की जरूरत होती है।
खैर, आज मैंने हिम्मत कर ही दी है। दरअसल वह शख्स ही ऐसे हैं कि आप सहज उनके बारे में कुछ नहीं लिख सकते हैं। उनसे मेरी पहली मुलाकात आज भी मेरे जेहन में हैं। लेकन वह उनके साथ मेरी छोटी मुलाकात थी। आईटीओ में एक मैथिली कार्यक्रम के दौरान उनसे छोटी सी मुलाकात हुई थी। बस केवल चेहरे की पहचान। लेकिन आज भी वह पहली भेंट आंखों में बसी हुई है।
इसके बाद भी उनसे मुलाकात हुई। इस बार उनसे बात करने का मौका मिला। दरअसल, मुलाकात से कुछ दिनों पहले ही हंस में उनका एक आलेख पढ़ा था। हंस: मजाज से मुलाकात इसमें अविनाश एक अलग रंग में नजर आए थे। जब उनसे मिला और बात की तो पता चला यह वैसे ही हैं जैसा लिखते हैं।
बेहद सपाट और साफ ढ़ंग से अपनी बात कहने वाले अविनाश का तब तक मैं कायल हो चुका था। उनके घर भी धमका तो पता चला यह शख्स आखिर सब को अपना सा क्यों लगता है।
चेहरे पे हमेशा एक मुस्कान, सांवला चेहरा खुल कर बतियाने की आदत.......ना जाने कितनी चीजें एक साथ अविनाश के साथ जुड़ती चली जाती है....और हर बार यह शख्स मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देता रहा ।
आज भी जब उनसे बात करता हूं तो एक बार ऐसा लगता है कि जैसे मुझमें कुछ नयापन आ गया है... उनका हंसते हुए कहना- "कि यो की हाल...."(मैथिली में, हम मैथली भाषी जो ठहरे)
हमलोग एक ही इलाके से ताल्लुक रखते हैं सो, मैथिली हमारी बातचीत में हमेशा बनी रहती है । ब्लाग या पत्रकारिता से इतर भी यह शख्स मुझे भाता है। ठीक वैसे ही जैसे मुझे रेणु और गुलजार भाते हैं। इन्हें मैं क्यूं चाहता हूं, क्यों पढ़ता हूं, इसे मैं स्पष्ट नहीं कर सकता। यही चीज अविनाश के साथ भी लागू होती है। ........
10 comments:
कैसन बात करत हो बबुआ आप भी.हद है, एक फ्राड आदमी की इस तरह तरफदारी, जिसकी कौनो औकात नईन, करना तो अपने आपको गिराना हुआ. यू कैन भी डिफान्ड पतनशील. कैइसन मर्दे आदमी कहवावा हो?
ठीक कहत हौ प्रमोद भाई उर्फ अज़दक वाले उर्फ Anonymous जी, ससुरा फ्रॉड के बारे में लिखिस है। फ्रॉडवा तेल लगाहिस होगा कि एतना गारी पर रहा है, तनी परसंसा कर दो जी। और ई गिरिन्दर बाबू कर दिये।
जब जब अपनी बुराई सुनो. समझो तरक्की कर रहे हो :)
अगली कुछ और मुलाकातों तक आप अपनी राय पर कायम रहे तो खुशी होगी.
आपने नेक काम किया है। इस वक्त जब ब्लॉग जगत के तमाम लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया है, आपने उनके बारे में निर्दोष तरीके से लिखा। मैं समझता हूं कि लोग एक मौक़े की तलाश में थे ताकि इस शख्स पर वार कर किया जा सके। शायद असहमति की मुखर अभिव्यक्ति ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। चाहते तो गुट बना सकते थे। इतना क़द तो हो ही गया है कि लोग उनके गुट में खुशी खुशी होते। लेकिन अपने अक्खड़पन की वजह से आज वो कहीं नहीं हैं।
रोचक टिप्पणीशास्त्र रच रहे हैं बेनामी।
साथ वाथ किसी ने नहीं छोड़ा है मनोज भाई। इस तरह के निष्कर्ष भी जल्दबाजी के हैं। दरअसल हुआ ही कुछ नही है। बिना बात की क्यों भावुकता दिखाई जाए। एक सैद्धांतिक बात थी जिस पर दो दो राय सबकी आ गई। बात खत्म हुई। भदेस खत्म होना चाहिए।
अविनाश जी बहुत संबल वाले हैं। कृपया ऐसी बाते न करें।
की यौ.. की हालचाल??
अब मैं क्या लिखूं.. अगर मैं उनकी तारीफ में कुछ लिखूंगा तो लोग कहेंगे की भाई-भतीजावाद अब ब्लौगिंग में भी चल निकला है.. मगर वो भी एक बहुत ही आम इंसान की तरह अच्छाईयां और बुराईयां समेटे हुये हैं..
So why the need to suck testicles now?
- Jack Spright, anonymous coward
Avinash ke bare main padha aur comment bhi dekha.Padhna achha laga.
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