Thursday, January 24, 2008

आज सड़कों पर

दुष्यंत कुमार


आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख
पर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।

एक दरिया है यहां पर दूर तक फैला हुआ,

आज अपने बाज़ुओं को देख पतवारें न देख।
अब यकीनन ठोस है धरती हकीकत की तरह,

यह हक़ीक़त देख लेकिन खौफ़ के मारे न देख।
वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे,


कट चुके जो हाथ उन हाथों में तलवारें न देख।
ये धुंधलका है नज़र का तू महज़ मायूस है,


रोजनों को देख दीवारों में दीवारें न देख।
राख कितनी राख है, चारों तरफ बिखरी हुई,


राख में चिनगारियां ही देख अंगारे न देख।

2 comments:

  1. Anonymous12:02 PM

    बड़े दिन बाद लौटे हैं आप गिरीन्द्र बाबू.
    समाचारों की दुनिया में रहते हो और ब्लागिंग के प्रति ऐसी उदासी?
    मेरे नये पते पर स्वागत है.
    www.visfot.com

    ReplyDelete
  2. गिरिन्द्र कैसे हो बंधु. बहुत दिनों बाद आना हुआ अनुभव पर. दुश्यत को पढकर अच्छा लगा.

    ReplyDelete