Sunday, September 02, 2007

जय जय हिन्दुस्तान


चलें आज हम फिर कविता की ओर मुड़ते हैं। सहारा समय की ऋचा साकल्ले एक बार फिर कविता लेकर यहां आ चुकी हैं।
हम इस वर्ष स्वंतत्रता की 60 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। इसी विषय पर कलम चली है रघु की, ऋचा ने उन्हीं की कविता अनुभव को दी है।
तो पढ़े और गढ़े भी कविता....।
गिरीन्द्र



1.




जिस अधिकार के लिए

हजारों शहीद हो गए,

उसे पाकर नई पीढ़ी

पूरी तरह स्वतंत्र

दिखाई देता है

बलिदानों को भूलकर

उन्हें सिर्फ

औपचारिकतावश याद करने की हरकतें

मात्र षड्यंत्र दिखाई देती हैं।
नेतृत्व

सीने में मचाओ कोहराम

कैसी बेशर्म शांति है...



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2.

रश्मियां फूट पड़ी

घने अंधेरे में

चकाचौंध जहान है,

सागर बरस रहा धरती पर

मानो पर्व कोई महान है,

हे अग्रणी ! हे अग्रदूत !
करने चला नेतृत्व जब
गूंज उठा ब्रह्मांड फिर

जय जय हिन्दुस्तान है

3 comments:

  1. कविता न.२ बहुत पसंद आई. कवि को बधाई और आपको प्रस्तुति का आभार.

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  2. प्रिय गिरीन्द्र,

    "जिस अधिकार के लिए
    हजारों शहीद हो गये"

    पढ कर एकदम रोमाच हो आया -- शास्त्री जे सी फिलिप

    जिस तरह से हिन्दुस्तान की आजादी के लिये करोडों लोगों को लडना पडा था, उसी तरह अब हिन्दी के कल्याण के लिये भी एक देशव्यापी राजभाषा आंदोलन किये बिना हिन्दी को उसका स्थान नहीं मिलेगा.

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  3. Anonymous2:55 PM

    स्वतंत्रता की 60वीं सालगिरह मना रहे भारतवासियों के नाम लिखी गई यह कविता जागृति के लिए जयघोष करता प्रतीत होता है...

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