मुझे आदमी का सड़क पार करना हमेशा अच्छा लगता है क्योंकि इस तरह एक उम्मीद - सी होती है कि दुनिया जो इस तरफ है शायद उससे कुछ बेहतर हो सड़क के उस तरफ। -केदारनाथ सिंह
Tuesday, August 21, 2007
गुलजार एक महशूर शायर हैं जो फिल्में बनाते हैं..... गुलजार एक अप्रतिम फिल्मकार हैं जो कविता लिखते हैं
गुलजार एक महशूर शायर हैं जो फिल्में बनाते हैं। गुलजार एक अप्रतिम फिल्मकार हैं जो कविता लिखते हैं। विमल राय के सहायक निर्देशक के रूप में शुरू हुए। फिल्मों की दुनिया में उनकी कविताई इस तरह चली कि हर कोई गुनगुना उठा। एक गुलजार टाइप बन गया। अनूठे संवाद, अविस्मरणीय पटकथाएँ, आसपास की जिन्दगी के लम्हें उठातीं मुग्धकारी फिल्में। परिचय, आँधी, मौसम, किनारा, खुश्बू, नमकीन, अंगूर, इजाजत...हर एक अपने में अलग..।
1934 में दीना (अब पाकिस्तान) में जन्में गुलजार ने रिश्ते और राजनीति- दोनों की बराबर परख की। उन्होंने माचिस और हू-तू-तू बनाई, सत्या के लिए लिखा- गोली मार भेजे में, भेजा शोर करता है......................
कई किताबें लिखीं। चौरस रात और रावी पार में कहानियाँ हैं। कुछ नज्में, साईलेंसेस, पुखराज, चांद पुखराज का, ऑटम मून, त्रिवेणी वगैरह में कविताएँ हैं। बच्चों के मामले में बेहद गंभीर। बहुलोकप्रिय गीतों के अलावा ढ़ेरों प्यारी-प्यारी किताबें लिखीं जिनमें कई खंडों वाली बोसकी का पंचतंत्र भी है। मेरा कुछ सामान.........फिल्मी गीतों का पहला संग्रह था, छैंया-छैंया दूसरा। सनसेट प्वाइंट, विसाल, वादा, बूढ़े पहाड़ों पर या मरासिम...जैसै अल्बम हैं तो फिजा और फिलहाल भी..। यह विकास यात्रा का नया चरण है।
बाकी कामों के साथ-साथ मिर्जा गालिब जैसा प्रामाणिक टीवी सीरियल बनाया..कई अलंकरण पाए। सफर इसी तरह जारी है। फिल्में भी हैं और पाजी नज्मों का मजमुआ भी आकार ले रहा है।
चिट्ठी का पता वही है-
बोस्कियाना, पाली हिल, बांद्रा, मुंबई।
(राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित गुलजार की एक बेहद संवेदनशील फिल्म मेरे अपने की कहानीनुमा प्रस्तुती- मेरे अपने ..से साभार.)
गुलजार जहां हों वहां होना पढ़ना अच्छा लगता है.
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