मुझे आदमी का सड़क पार करना हमेशा अच्छा लगता है क्योंकि इस तरह एक उम्मीद - सी होती है कि दुनिया जो इस तरफ है शायद उससे कुछ बेहतर हो सड़क के उस तरफ। -केदारनाथ सिंह
Wednesday, July 18, 2007
दिल्ली का एक अलग शापिंग स्पॉट
1990 की तपती गर्मी में कनॉट प्लेस के रिगल बिल्डिंग में एक दुकान खोला गया और नाम रखा गया- पिपुलट्री..। कुछ लोग जो स्वंय को अलग कहते हैं, जिनका सोचना भी अलग होता है और सबसे अलग बात , वे समाज को एक नयी दिशा देना चाहते हैं।
कुछ इसी ख्यालात के लोग मिलकर पिपुलट्री को शापिंग स्टेशन की शक्ल दी।
समय जैसे-जैसे अगे बढ़ता गया, उसी रफ्तार में पिपुलट्री भी दिल्ली शहर में अपनी जगह बनाता चला गया। समाज के कुछ खास तबके , मसलन छात्र, मीडिया कर्मी, लेखक, सोशल वर्क आदि इस शापिंग स्टेशन के दिवाने बन गये। खासकर विश्वविद्यालय के छात्रों को यहां का सामान काफी पसंद आता है। यहां आकर वे एक खासप्रकार के ड्रेस ले
जाते हैं।
अलग प्रकार के ट्राउसर- कुर्ते जो आपको सुफियाना लुक देंगे वहीं बिंदास रंग-बिरंगे टी-शर्ट आपको मस्ताना लुक देंगे। लोहे, पीतल की अजीबो-गरीब लॉकेट आपको कुछ अलग सोचने के लिए मजबूर कर ही देंगे। गजलों के शौकिनों को ऐसे टी-शर्ट नसीब होते हैं जिन पर गालिब से लेकर निदा फाज़ली के शब्द मौजूद रहते हैं।
इस शापिंग स्टोर को केवल आप शापिंग स्पॉट मत समझें, दरअसल यहां चर्चाओं का बाजार भी लगता रहता है। यहां बुक स्टोर भी है। यहां लगातार आने वाली स्टीफेंस की छात्रा सौम्या कहती है- “बहसों के दौरान हम अपनी बातों को सामने रखते हैं। विभिन्न मुद्दों पर यहां बहसे हुआ करती है। इन सबके अलावे सुफियाना ड्रेस तो यहां मिलता है हीं..।“
पिपुलट्री को स्टूडियो शॉप भी कहा जाता है। सिमरन, शांतनु, अजमल, मनोहर जैसे लोग इस स्टूडियो को अपनी जिंदगी का मकसद मानते हैं। ये लोग अलग-अलग राज्यों से स्टूडियो के लिए सामान लाते हैं। मसलन राजस्थान से कालाडोरा के रंग तो गोवा से रंग की बारीकी, रांची से संथालों की कलाकृति, वहीं मधुबनी बिहार से मिथिला पेंटिंग की बारीकी। इन सभी को मिलाकर ये लोग एक अरबन फोक का लुक तैयार करते हैं.यहां क्लासिकल संगीत के कद्रदानों के लिए कैसेट- सीडी भी उपलब्ध है।
पिपुलट्री की इन्हीं बातों के कारण यहां लोगों की भीड़ लगी रहती है..।
तो इस दफे जब भी कनॉट प्लेस की ओर जाना हो, और वक्त आपके पास हो तो जरूर पिपुलट्री का एक चक्कर लगाऐं.........।
इसके विषय में और जानकारी के लिए यहां आवें-
http://www.peopletreeonline.com/
शुक्रिया जानकारी के लिए
ReplyDeleteआपने याद दिला दी मुझे अपने दिल्ली प्रवास की.पीप्ल्स ट्री मेरा भी पंसदीदा अड्डा था.कनाट प्लेस जब भी जाती वहाँ ज़रूर कुछ पल गुज़ारती.
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ReplyDeleteजानकारी कि लिये ध्न्यवाद.
ReplyDeleteजानकारी कि लिये ध्न्यवाद.
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ReplyDeleteजानकारी देने के लिए धन्यवाद। कुछ दिनों बाद आपको कुछ जानकारी मैं भी दूंगा।
ReplyDeleteएकाध बार किताब तो हमने भी खरीदी है लेकिन इत्ती जानकारी न थी. हम ठहरे छुट्टा पत्रकार, अक्ल घुटनों में होती है.
ReplyDeleteअच्छी सोच, इस तरह के प्रयास चिट्ठों को पठनीय बनाएंगे.
यह जगह तो ज्ञात न थी. अवश्य जायेंगे कभी मौका मिला तो. आभार जानकारी के लिये.
ReplyDeletehence adapts youuse attendance formal brief consumers debated flashlo expletives leakage
ReplyDeletelolikneri havaqatsu
इस आकृति को मूलतः छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के ग्राम एकताल के झारा पारंपरिक धातु शिल्पी श्री गोविंद राम ने तैयार किया, कलाकृति को करमा-वृक्ष नाम से जाना जाता है. यह पहली बार संभवतः भोपाल विश्व कविता 1984 का प्रतीक चिह्न बन कर लोकप्रिय हुआ था.
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