Saturday, July 07, 2007

कवि रेणु कहे.......

फणीश्वर नाथ रेणु उपन्यासों के माध्यम से लोकप्रिय हुए। मैला-आंचल और परती परिकथा उनकी अमूल्य कृतियों में है। हिन्दी साहित्य से मेल-जोल रखने वाले तकरीबन हर शख्स की जुबां पे मैला-आंचल चढ़ कर हीं बोलता है। साहेबान, रेणु कवि भी हैं। उनकी कृतियों को खंगालने पर आपको केवल अनमोल मोती ही मिलेगी।
आज पेश है उनकी कुल चार अलग-अलग मुड की कविताऐं, जो मुझे अलग-अलग जगहों में पढ़ने को मिली। मेरा बस यह प्रयास है कि मेरे रेणु ऑन-लाईन पाठकों को भी उसी सरलता और सहजता से मिलें, जैसे वो किताबों के शौकिनों को मिलते हैं।

आपका
गिरीन्द्र नाथ


1.
कहा सुना सब माफ करोगे, लेकिन याद रखोगे
बचपन के सब मित्र तुम्हारे, सदा याद करते हैं
गांव को छोड़कर चले गये हो शहर, मगर अब भी तुम
सचमुच गंवई हो, शहरी तो नहीं हुए हो..
इससे बढ़कर और भला क्या हो सकती है बात
अब भी मन में बसा हुआ है इन गांवों का प्यार.......

2.
नयन से नीर मत बहा माँ,
अभी भी जीवित तेरे पूत
किया है हमने अर्पित प्राण...
कभी मर सकता वह नहीं
तुम्हारा बेटा वीर मुजीब
शत्रु खुद हो जाएंगे क्षार
मुक्ति का दिन है बहुत करीब....
होंठ पर जय बंगला का गान
चले हम करने को निर्मूल
दुश्मनों के सारे अभियान.........
3.
मालिक ....माफ करो,
घरवाली का पैर भारी
मछली खाने का जी हुआ है..
दो.........जीवा हैं..
बेचारी के मन में
मछली-भात खाने की साध है,
डेढ़ सेर चावल घर में है
पिछवाड़े में कद्दू .........
4.
दुनिया दूषती है, हंसती है
ऊँगलियां उठा कहती है
कहकहे कसती है..
राम रे राम..
क्या पहरावा है
क्या चाल-ढ़ाल
सबड़-भबड़
आल-जाल-बाल
हाल में लिया है भेख
जटा या केश
जनाना – ना- मर्दाना
या जन.................
आ-खा- हा- हा, हीं – हीं....

2 comments:

Anonymous said...

maza aa gya jha shaeb,
renu ji ko aap online pathko tak paunchane ki kausis karte raheye.....

Anonymous said...

मैं इन दिनो लगातार आपके ब्लाग पर आ रही हूं. मैं खुश हूं कि आप लगातार नये प्रयोग कर रहे हैं.
बस लग रहें.
श्वेता.