मुझे आदमी का सड़क पार करना हमेशा अच्छा लगता है क्योंकि इस तरह एक उम्मीद - सी होती है कि दुनिया जो इस तरफ है शायद उससे कुछ बेहतर हो सड़क के उस तरफ। -केदारनाथ सिंह
Wednesday, March 07, 2007
दर-दर की ठोकरें
अक्सर कहा जाता है कि ढ्लान से उतरना काफी तकलीफ देने वाला होता है. वह ढ्लान चाहे कैसा भी हो..सेक्स वर्कर के साथ भी ऐसा हीं होता है. सेक्स वर्कर के ज़िस्म के आकर्षण का ढ्लान उनको भुखमरी की चोखट पर ला पटकता है. ज़वानी के दिनो मे तो इनके जिस्म के खरीददारो की कमी नही होती है, लेकिन उम्र के ढ्लने के साथ ही कोठे की सीढियां भी इनलोगो से तौबा करने लगती है.
जवानी के दिनो में मुसीबत की मारी ये औरतें अंतिम विकल्प के रूप मे कोठे को अपना ठिकाना बनाती है. पर वक्त की तेज आंधी में पता नही क्या हो जाता है कि कोठे भी इनसे बेवफायी करने लगती है. बुढापे में उनके खातिर तमाम रास्ते बंद हैं. आखिर वे जयें तो जायें कहां?
दिल्ली समेत देश के अनेक क्षेत्रों की बूढी वेश्यायें पेट की आग बुझाने के लिए भीख मांगती हैं. यह वह तबका है जिसकी चिन्ता किसी को नही है. देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने अपने शासनकाल के दौरान संसद मे एक बिल पारित कर इन वेश्याओं के पुनर्वास संबंधी एक कमेटी बनायी थी. लेकिन धन के अभाव मे आज तक इस बावत कुछ नही किया जा सका.
दिल्ली के जी.बी.रोड मे मौजूद कोठे के आसपास भीख मांगती वृद्धा वेश्याओं की आपबीती अब यहां पेश की जायेगी. अपने फिल्ड वर्क के दौरान मैने जो कुछ अनुभव किया उसे यहां पेश करूंगा. मैं शुक्रगुजार हूं खैराती लाल भोला का,जिनके सहयोग से मैने इन इलाको का दौरा किया. गौरतलब है कि भोला जी ४० सालो से रेड लाइट एरिया मे काम कर रहे है.
तो दोस्तो इन लोगो की आपबीती आपके सामने कल से शुरू होगी ..तब तक के लिए अलविदा...
गिरीन्द्र्
कल का इंतज़ार रहेगा।
ReplyDeleteआपने जो विषय उठाया है... मर्मस्पर्शी, हृदयबेधक,.. यद्यपि इन शब्दों से कोई हल नहीं निकलता...
ReplyDeleteदेखते हैं आने वाले कल में क्या होता है सरकार और समाज की तरफ से इनके लिए...
जबतक समाज अपने खुलेपन की पराकाष्ठा को पार नहीं करेगा कुछ नहीं बदले'गा जब हम मान लेगें की यह भी एक प्रकार का रोजगार है विदेशो की तरह तो फिर सब कुछ बदलने लगेगा…लेकिन अभी हमारा समाज "मल्लिका सेरावत" को सह नहीं पा रहा है तो यह तो बहुत बड़ा मुद्दा है>>>
ReplyDelete