tag:blogger.com,1999:blog-23741193.post7545248069091532455..comments2024-03-27T23:27:13.656+05:30Comments on अनुभव: ये जो गैप हैGirindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झाhttp://www.blogger.com/profile/12599893252831001833noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-23741193.post-6862745943351579102010-09-07T16:25:54.895+05:302010-09-07T16:25:54.895+05:30हमेशा की तरह संवेदना को छूती लाइनें।
बस ये कि मैं ...हमेशा की तरह संवेदना को छूती लाइनें।<br />बस ये कि मैं शांति के लिए किसी शांत जगह की कल्पना नहीं करता,जो जगह है जिसमें बसों के हार्न है,मस्जिद की नवाज है,मंदिर के जो कान-फोडू घंटे की आवाज है,बच्चों का शोर है उन सबके बीच दब गयी-सहम गयी शांति को खोजना चाहता हूं,महसूस करना चाहता हूं। शोर से चिपक गयी शांति को उससे अलगाना चाहता हूं।विनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23741193.post-26883729135628502492010-09-06T23:51:22.533+05:302010-09-06T23:51:22.533+05:30कविता का पूरा स्वर आशामूलक है। यह आशा वायवीय नहीं ...कविता का पूरा स्वर आशामूलक है। यह आशा वायवीय नहीं बल्कि ठोस ज़मीन पर पैर टिके रहने के कारण है।<br /><br /><a href="http://manojiofs.blogspot.com/2010/09/blog-post_06.html" rel="nofollow"> गीली मिट्टी पर पैरों के निशान!!, “मनोज” पर, ... देखिए ...ना! </a>मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com