मुझे आदमी का सड़क पार करना हमेशा अच्छा लगता है क्योंकि इस तरह एक उम्मीद - सी होती है कि दुनिया जो इस तरफ है शायद उससे कुछ बेहतर हो सड़क के उस तरफ। -केदारनाथ सिंह
Tuesday, March 30, 2010
अथ जींस कथा
जींस, क्या केवल पहनावा भर है या फिर परिधान संस्कृति में क्रांति का दूतक ? यह सवाल अभी माथे में उबाल मार रहा है। जहां तक मेरी बात है तो आठवी में पढ़ाई के दौरान जींस से दोस्ती हुई। ऐसी दोस्ती जिसने मैले से भी दोस्ती करा दी। एक नहीं दो नहीं पांच नहीं महीने भर पहनने के बाद भी जींस मुस्कुराता ही रहा, कभी यह नहीं कहा, भई- कभी हमें भी पानी में डुबोओ धूप में नहलाओ, कभी नहीं। प्यारी सखी की तरह हमेशा संग-संग चलने की कसमें खाता रहा जींस।
वीकिपीडिया पर जाकर दुरुस्त हुआ तो पता चला कि अमेरिका से चलकर जींस ने कैसे दुनिया भर के देशों की यात्रा की और घर-घर में पहुंच बनाई। इसने कभी महिला-पुरुष में अंतर नहीं देखा इसे तो बस हर घर में अपनी जगह बनानी थी। 50 के दशक में अमेरिकी युवा वर्ग का यह सबसे पसंदीदा ड्रेस बन गया। नीले रंग के जींस के दीवानों को यह पता होना चाहिए कि ब्लू जींस को अमेरिकी युवा संस्कृति का द्वेतक भी माना जाता है।
दिल्ली-मुंबई से लेकर दरभंगा-पूर्णिया, कानपुर जैसे शहरों और देहातों तक जींस ने जिस तेजी पांव पंसारे हैं, वह काबिले-गौर है। बिना किसी तामझाम के जींस ने हर घर में दस्तक दी। कहीं महंगे ब्रांड के तले तो कहीं बिना ब्रांड के। एक समय जब पूर्वांचल के लोग दिल्ली में रोजगार के लिए आते तो जाते वक्त पुरानी दिल्ली की गलियों से ट्राजिंस्टर , सुटकेस आदि ले जाते और अब समय के बदलाव के साथ उनके बक्शे में जींस ने भी जगह बना ली। मटमेल धोती-लुंगी के स्थान पर जींस और ढीला-ढाला टी-शर्ट कब हमारे-आपके गांव तक पहंच गया पता ही नहीं चला।
कितना बेफिक्र होता है जींस, लगातार पहनते जाओ और फिर जोर से पटकने के बाद इसे पहन लो, इसकी यारी कम नहीं होगी। जितनी पुरानी जींस, उससे आपकी आशिकी उतनी ही मजबूत बनती जाती है। रंग उड़े जींस की तो उसकी मासूमियत और भी बढ़ जाती है।
जींस की कथा में न दलित आता है न सर्वण, यह तो सभी को सहर्ष स्वीकार कर लेता है। इसे राजनीति करने नहीं आता और न ही केवल एसी कमरे या फिर लक्जरी कारों की सवारी इसे पसंद है। यह शहरों में उतनी ही मस्ती कर लेता है जितनी धूल उड़ती सड़कों पर। आज पुरानी जींस को पहनते वक्त कुछ पुरानी यादें फिर से ताजा हो गई, जिसमें धूल के साथ फूल की कुछ पंखूरियां भी है।
बहुत बढ़िया पोस्ट.....दरअसल मानव स्थायित्व चाहता है चाहे किसी भी क्षेत्र में, जींस के ज़रिये वो इसी स्टेबिलिटी को तलाशता है और फिर सुविधा तो है ही इसे पहनने में......."
ReplyDeleteलोकप्रियता की वजह ही यह है. बहुत सरल पहनावा है.
ReplyDeleteजींस को राजनीति बहुत भाती है और राजनीति से इसका गहरा ताल्लुक भी है। यह हमेशा ही से 'प्रति'की काउंटर कल्चर की वकालत करता आया है, अमेरीका में भी और दुनिया जहाँ में भी। यही कारण है कि इसने ब्राह्मणों के साफ-सुथड़ेपन पर बाट लगा दी और मैलापन अछूत नही लगने लगा।
ReplyDeleteBeautiful write up --keep writing
ReplyDeleteगिरीन्द्र नहीं पता था जींस पर रुमानियत से लबरेज ऐसा राइट अप भी संभव है। बढ़िया।
ReplyDeleteजैसे के मुस्लिमो की भीड़ में एक चोथाई लोगो को जींस पहने अमेरिका विरोधी नारे लगाते देख रहा हूँ
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