Monday, August 17, 2009

बाप ने ईँटो को जोड़कर बनाया था मकान, बेटे कर रहे हैं उसे नीलाम

बायीं तरफ तस्वीर में दिख रहे शाहनवाज ने हाल ही में ब्लॉगिंग शुरू की। मुझे शाहनवाज अपनी पहली नौकरी में मिले। इसके बाद हम दोनों में दोस्ती की गांठ पड़ गई। शायरी का शौक रखने वाले शाहनवाज जुर्रत नाम से ब्लॉग का संचालन करते हैं। अभी तक उन्होंने जुर्रत पर कुल तीन पोस्ट की है। आज ही उन्होंने एक कविता पोस्ट की है, जिसका टाइटल उन्होंने कुछ भी नहीं दिया है और शायद इसकी जरूरत भी नहीं है।

पिता को लेकर उनकी यह कविता झकझोर कर रख देने वाली है। कुछ दिनों से मै भी उधेड़बुन में था कि पिता के अरमानों की व्याख्या बेटे कैसे करते हैं। हम सब जो बेटे हैं, वे क्या कर रहे हैं। मैं खुद इन बातों में खो जाता हूं। खासकर पिता शब्द के करोड़ों चरित्रों को डिस्क्राइब करते हुए। यह कविता उसी श्रृखंला का हिस्सा मालूम होती है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर एक के अंदर एक पिता जीवित होता है जो छटपटाता भी रहता है।

अभी पढ़िए शाहनवाज की कविता-


बाप ने जोड़े थे
कई ईंटे
और बनाया था एक मकान
ये उसके ख्वाबों का घर था
जहाँ थे उसके बच्चे
जो उसकी आँखों के सामने
घर के आँगन में खेलते
धीरे धीरे हो रहे थे जवान

बाप मर चुका है
और बच्चे हो चुके है जवान
बाप के ख्वाबों का घर
अब उसके जवान बच्चे
कर रहे हैं नीलाम
क्यूंकि उनकी बीवियों को
यह घर लगता है छोटा

माँ खामोश है
और देख रही है
अपने पति के ख्वाबों का बलात्कार
यह जानते हुए भी
कि उस बड़े मकान में
मिलेगा उसे सिर्फ एक कोना

13 comments:

  1. Anonymous4:47 PM

    मैं बेटी हूं, पर चुप हूं, इस पढ़ने के बाद। शाहनवाज के शब्दों में खो गई हूं।

    आनंदी

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  2. Anonymous4:47 PM

    मैं बेटी हूं, पर चुप हूं, इस पढ़ने के बाद। शाहनवाज के शब्दों में खो गई हूं।

    आनंदी

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  3. बहुत ही खुब

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  4. Anonymous7:52 PM

    एक सच्चाई, हर काल की

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  5. संवेदनाओं को झकझोरने वाले भाव की रचना। वाह।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  6. bahut hi acha hai.

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  7. शाहनवाज ने जिस तरह यह कविता लिखी है उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है

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  8. Anonymous3:45 PM

    अरे कब से अपने यार को छुपा कर रखे थे दोस्त। सचमुट झकझोर कर रख देन वाली कविता है। इस बात को इस अंदाज में मैंने कभी नहीं पढ़ा था।
    शहनवाज को शुक्रिया।
    अमनदीप अटवाल
    लुधियाना

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  9. Anonymous3:48 PM

    This comment has been removed by a blog administrator.

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  10. Anonymous3:49 PM

    जय हो शाहनवाज..शानदार अभिव्यक्ति। गिरीन्द्र तुम्हें भी यहां इसे लाने के लिए।

    देव

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  11. Anonymous3:51 PM

    This comment has been removed by a blog administrator.

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  12. जैसी आपने अपनी भूमिका में कहा..वैसा ही कविता में महसूस हुआ। हकीकत तो यही है..

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